श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 16 श्लोक 1-14

नवम स्कन्ध: षोडशोऽध्याय: अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: षोडश अध्यायः श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


परशुराम जी के द्वारा क्षत्रिय संहार और विश्वामित्र जी के वंश की कथा

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! अपने पिता की यह शिक्षा भगवान परशुराम ने ‘जो आज्ञा’ कहकर स्वीकार की। इसके बाद वे एक वर्ष तक तीर्थ यात्रा करके अपने आश्रम पर लौट आये।

एक दिन की बात है, परशुराम जी की माता रेणुका गंगा तट पर गयी हुई थीं। वहाँ उन्होंने देखा कि गन्धर्वराज चित्ररथ कमलों की माला पहने अप्सराओं के साथ विहार कर रहा है। वे जल लाने के लिये नदी तट पर गयी थीं, परन्तु वहाँ जलक्रीड़ा करते हुए गन्धर्व को देखने लगीं और पतिदेव के हवन का समय हो गया है-इस बात को भूल गयीं। उनका मन कुछ-कुछ चित्ररथ की ओर खिंच भी गया था। हवन का समय बीत गया, यह जानकर वे महर्षि जमदग्नि के शाप से भयभीत हो गयीं और तुरंत वहाँ से आश्रम पर चली आयीं। वहाँ जल का कलश महर्षि के सामने रखकर हाथ जोड़ खड़ी हो गयीं। जमदग्नि मुनि ने अपनी पत्नी का मानसिक व्यभिचार जान लिया और क्रोध करके कहा- ‘मेरे पुत्रों! इस पापिनी को मार डालो।’ परन्तु उनके किसी भी पुत्र ने उनकी वह आज्ञा स्वीकार नहीं की। इसके बाद पिता की आज्ञा से परशुराम जी ने माता के साथ सब भाइयों को मार डाला। इसका कारण था। वे अपने पिताजी के योग और तपस्या का प्रभाव भलीभाँति जानते थे।

परशुराम जी के इस काम से सत्यवतीनन्दन महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा- ‘बेटा! तुम्हारी जो इच्छा हो, वर माँग लो।’ परशुराम जी ने कहा- ‘पिताजी! मेरी माता और सब भाई जीवित हो जायें तथा उन्हें इस बात की याद न रहे कि मैंने उन्हें मारा था’। परशुराम जी के इस प्रकार कहते ही जैसे कोई सोकर उठे, सब-के-सब अनायास ही सकुशल उठ बैठे। परशुराम जी ने अपने पिताजी का तपोबल जानकर ही तो अपने सुहृदों का वध किया था।

परीक्षित! सहस्रबाहु अर्जुन के जो लड़के परशुराम जी से हारकर भाग गये थे, उन्हें अपने पिता के वध की याद निरन्तर बनी रहती थी। कहीं एक क्षण के लिये भी उन्हें चैन नहीं मिलता था।

एक दिन की बात है, परशुराम जी अपने भाइयों के साथ आश्रम से बाहर वन की ओर गये हुए थे। यह अवसर पाकर वैर साधने के लिये सहस्रबाहु के लड़के वहाँ आ पहुँचे। उस समय महर्षि जमदग्नि अग्निशाला में बीते हुए थे और अपनी समस्त वृत्तियों से पवित्रकीर्ति भगवान् के ही चिन्तन में मग्न हो रहे थे। उन्हें बाहर की कोई सुध न थी। उसी समय उन पापियों ने जमदग्नि ऋषि को मार डाला। उन्होंने पहले से ही ऐसा पापपूर्ण निश्चय कर रखा था। परशुराम की माता रेणुका बड़ी दीनता से उनसे प्रार्थना कर रही थीं, परन्तु उन सबों ने उनकी एक न सुनी। वे बलपूर्वक महर्षि जमदग्नि का सिर काटकर ले गये। परीक्षित! वास्तव में वे नीच क्षत्रिय अत्यन्त क्रूर थे। सती रेणुका दुःख और शोक से आतुर हो गयीं। वे अपने हाथों अपनी छाती और सिर पीट-पीटकर जोर-जोर से रोने लगीं- ‘परशुराम! बेटा परशुराम! शीघ्र आओ’। परशुराम जी ने बहुत दूर से माता का ‘हा राम!’ यह करुण-क्रन्दन सुन लिया। वे बड़ी शीघ्रता से आश्रम पर आये और वहाँ आकर देखा कि पिताजी मार डाले गये हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः