श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 1-16

नवम स्कन्ध: द्वादशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: द्वादश अध्यायः श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


इक्ष्वाकु वंश के शेष राजाओं का वर्णन

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! कुश का पुत्र हुआ अतिथि, उसका निषध, निषध का नभ, नभ का पुण्डरीक और पुण्डरीक का क्षेमधन्वा। क्षेमधन्वा का देवानीक, देवानीक का अनीह, अनीह का पारियात्र, पारियात्र का बलस्थल और बलस्थल का पुत्र हुआ वज्रनाभ। यह सूर्य का अंश था।

वज्रनाभ से खगण, खगण से विधृति और विधृति से हिरण्यनाभ की उत्पत्ति हुई। वह जैमिनि का का शिष्य और योगाचार्य था। कोसल देशवासी याज्ञवल्क्य ऋषि ने उसकी शिष्यता स्वीकार करके उससे अध्यात्म योग की शिक्षा ग्रहण की थी। वह योग हृदय की गाँठ काट देने वाला तथा परमसिद्धि देने वाला है।

हिरण्यनाभ का पुष्य, पुष्य का ध्रुवसन्धि, ध्रुवसन्धि और सुदर्शन, सुदर्शन का अग्निवर्ण, अग्निवर्ण का शीघ्र और शीघ्र का पुत्र हुआ मरु। मरु ने योग साधना से सिद्धि प्राप्त कर ली और वह इस समय भी कलाप नामक ग्राम में रहता है। कलियुग के अन्त में सूर्यवंश के नष्ट हो जाने पर वह उसे फिर से चलायेगा।

मरु से प्रसुश्रुत, उससे सन्धि और सन्धि से अमर्षण का जन्म हुआ। अमर्षण का महस्वान् और महस्वान का विश्वसाह्व। विश्वसाह्व का प्रसेनजित्, प्रसेनजित् का तक्षक और तक्षक का पुत्र बृहद्वल हुआ। परीक्षित! इसी बृहद्वल को तुम्हारे पिता अभिमन्यु ने युद्ध में मार डाला था।

परीक्षित! इक्ष्वाकु वंश में इतने नरपति हो चुके हैं। अब आने वालों के विषय में सुनो। बृहद्वल का पुत्र होगा बृहद्रण। बृहद्रण का उरुक्रिय, उसका वत्सवृद्ध, वत्सवृद्ध का प्रतिव्योम, प्रतिव्योम का भानु और भानु का पुत्र होगा सेनापति दिवाक। दिवाक का वीर सहदेव, सहदेव का बृहदश्व, बृहदश्व का भानुमान, भानुमान का प्रतीकाश्व और प्रतीकाश्व का पुत्र होगा सुप्रतीक। सुप्रतीक का मरुदेव, मरुदेव का सुनक्षत्र, सुनक्षत्र का पुष्कर, पुष्कर का अन्तरिक्ष, अन्तरिक्ष का सुतपा और उसका पुत्र होगा अमित्रजित्। अमित्रजित से बृहद्राज, बृहद्राज से बर्हि, बर्हि से कृतंजय, कृतंजय से रणंजय और उससे संजय होगा। संजय का शाक्य, उसका शुद्धोद और शोद्धोद का लांगल, लांगल का प्रसेनजित् और प्रसेनजित का पुत्र क्षुद्रक होगा। क्षुद्रक से रणक, रणक से सुरथ और सुरथ से इस वंश के अन्तिम राजा सुमित्र का जन्म होगा। ये सब बृहद्वल के वंशधर होंगे। इक्ष्वाकु का यह वंश सुमित्र तक ही रहेगा। क्योंकि सुमित्र के राजा होने पर कलियुग में यह वंश समाप्त हो जायेगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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