श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 20 श्लोक 1-11

पंचम स्कन्ध: विंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: विंश अध्यायः श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद


अन्य छः द्वीपों तथा लोकालोक पर्वत का वर्णन

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- राजन्! अब परिमाण, लक्षण और स्थिति के अनुसार प्लक्षादि अन्य द्वीपों के वर्ष विभाग का वर्णन किया जाता है। जिस प्रकार मेरु पर्वत जम्बू द्वीप से घिरा हुआ है, उसी प्रकार जम्बू द्वीप भी अपने ही समान परिमाण और विस्तार वाले खारे जल के समुद्र से परिवेष्टित है। फिर खाई जिस प्रकार बाहर के उपवन से घिरी रहती है, उसी प्रकार क्षार समुद्र भी अपने से दूने विस्तार वाले प्लक्ष द्वीप से घिरा हुआ है। जम्बू द्वीप में जितना बड़ा जामुन का पेड़ है, उतने ही विस्तार वाला यहाँ सुवर्णमय प्लक्ष (पाकर) का भी वृक्ष है। उसी के कारण इसका नाम प्लक्ष द्वीप हुआ है। यहाँ सात जिह्वाओं वाले अग्नि देव विराजते हैं। इस द्वीप के अधिपति प्रियव्रत पुत्र महाराज इध्मजिह्व थे। उन्होंने इसको सात वर्षों में विभक्त किया और उन्हें उन वर्षों के समान ही नाम वाले अपने पुत्रों को सौंप दिया तथा स्वयं अध्यात्म योग का आश्रय लेकर उपरत हो गये। इन वर्षों के नाम शिव, यवस, सुभद्र, शान्त, क्षेम, अमृत और अभय हैं। इनमें भी सात पर्वत और सात नदियाँ ही प्रसिद्ध हैं।

वहाँ मणिकूट, वज्रकूट, इन्द्रसेन, ज्योतिष्मान्, सुपर्ण, हिरण्यष्ठीव और मेघमाल- ये सात मर्यादा पर्वत हैं तथा अरुणा, नृम्णा, आंगिरसी, सावित्री, सुप्रभाता, ऋतम्भरा और सत्यम्भरा- ये सात महानदियाँ हैं। वहाँ हंस, पतंग, ऊर्ध्वायन और सत्यांग नाम के चार वर्ण हैं। उक्त नदियों के जल में स्नान करने से इनके रजोगुण-तमोगुण क्षीण होते रहते हैं। इनकी आयु एक हजार वर्ष की होती है। इनके शरीरों में देवताओं की भाँति थकावट, पसीना आदि नहीं होता और संतानोत्पत्ति भी उन्हीं के समान होती है। ये त्रयीविद्या के द्वारा तीनों वेदों में वर्णन किये हुए स्वर्ग के द्वारभूत आत्मस्वरूप भगवान् सूर्य की उपासना करते हैं। वे कहते हैं कि ‘जो सत्य (अनुष्ठान योग्य धर्म) और ऋत (प्रतीत होने वाले धर्म), वेद और शुभाशुभ फल के अधिष्ठाता हैं-उन पुराणपुरुष विष्णु स्वरूप भगवान् सूर्य की हम शरण में जाते हैं’।

प्लक्ष आदि पाँच द्वीपों में सभी मनुष्यों को जन्म से ही आयु, इन्द्रिय, मनोबल, इन्द्रियबल, शारीरिक बल, बुद्धि और पराक्रम समान रूप से सिद्ध रहते हैं। प्लक्ष द्वीप अपने ही समान विस्तार वाले इक्षुरस के समुद्र से घिरा हुआ है। उसके आगे उससे दुगुने परिमाण वाला शाल्मली द्वीप है, जो उतने ही विस्तार वाले मदिरा के सागर से घिरा है। प्लक्ष द्वीप के पाकर के पेड़ के बराबर उसमें शाल्मती (सेमर) का वृक्ष है। कहते हैं, यही वृक्ष अपने वेदमय पंखों से भगवान् की स्तुति करने वाले पक्षिराज भगवान् गरुड़ का निवास स्थान है तथा यही इस द्वीप के नामकरण का हेतु है। इस द्वीप के अधिपति प्रियव्रत पुत्र महाराज यज्ञबाहु थे। उन्होंने इसके सुरोचन, सौमनस्य, रमणक, देववर्ष, पारिभद्र, आप्यायन और अविज्ञान नाम से सात विभाग किये और इन्हें इन्हीं नाम वाले अपने पुत्रों को सौंप दिया। इनमें भी सात वर्ष पर्वत और सात नदियाँ प्रसिद्ध हैं। पर्वतों के नाम स्वरस, शतश्रृंग, वामदेव, कुन्द, मुकुन्द, पुष्पवर्ष और सहस्रश्रुति हैं तथा नदियाँ अनुमति, सिनीवाली, सरस्वती, कुहू, रजनी, नन्दा और राका हैं। इन वर्षों में रहने वाले श्रुतधर, वीर्यधर, वसुन्धर और इषन्धर, नाम के चार वर्ण वेदमय आत्मस्वरूप भगवान् चन्द्रमा की वेदमन्त्रों से उपासना करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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