श्रीमद्भागवत महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय 3 श्लोक 1-13

षष्ठ स्कन्ध: तृतीय अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: तृतीय अध्यायः श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


यम और यमदूतों का संवाद

राजा परीक्षित ने पूछा- भगवन्! देवाधिदेव धर्मराज के वश में सारे जीव हैं और भगवान् के पार्षदों ने उन्हीं की आज्ञा भंग कर दी तथा उनके दूतों को अपमानित कर दिया। जब उनके दूतों ने यमपुरी में जाकर उनसे अजामिल का वृतान्त कह सुनाया, तब सब कुछ सुनकर उन्होंने अपने दूतों से क्या कहा? ऋषिवर! मैंने पहले यह बात कभी नहीं सुनी कि किसी ने किसी भी कारण से धर्मराज के शासन का उल्लंघन किया हो। भगवन्! इस विषय में लोग बहुत सन्देह करेंगे और उसका निवारण आपके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं कर सकता, ऐसा मेरा निश्चय है।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! जब भगवान् के पार्षदों ने यमदूतों का प्रयत्न विफल कर दिया, तब उन लोगों ने संयमनीपुरी के स्वामी एवं अपने शासक यमराज के पास जाकर निवेदन किया।

यमदूतों ने कहा- प्रभो! संसार के जीव तीन प्रकार के कर्म करते हैं- पाप, पुण्य अथवा दोनों से मिश्रित। इन जीवों को उन कर्मों का फल देने वाले शासक संसार में कितने हैं? यदि संसार में दण्ड देने वाले बहुत-से शासक हों, तो किसे सुख मिले और किसे दुःख- इसकी व्यवस्था एक-सी न हो सकेगी। संसार में कर्म करने वालों के अनेक होने के कारण यदि उनके शासक भी अनेक हों, तो उन शासकों का शासकापना नाममात्र के सामन्त होते हैं। इसलिये हम तो ऐसा समझते हैं कि अकेले आप ही समस्त प्राणियों और उनके स्वामियों के भी अधीश्वर हैं। आप ही मनुष्यों के पाप और पुण्य के निर्णायक, दण्डदाता और शासक हैं।

प्रभो! अब तक संसार में कहीं भी आपके द्वारा नियत किये हुए दण्ड की अवहेलना नहीं हुई थी; किन्तु इस समय चार अद्भुत सिद्धों ने आपकी आज्ञा का उल्लंघन कर दिया है। प्रभो! आपकी आज्ञा से हम लोग एक पापी को यातनागृह की ओर ले जा रहे थे, परन्तु उन्होंने बलपूर्वक आपके फंदे काटकर उसे छुड़ा दिया। हम आपसे उनका रहस्य जानना चाहते हैं। यदि आप हमें सुनने का अधिकारी समझें तो कहें। प्रभो! बड़े ही आश्चर्य की बात हुई कि इधर तो अजामिल के मुँह से ‘नारायण!’ यह शब्द निकला और उधर वे ‘डरो मत, डरो मत!’ कहते हुए झटपट वहाँ आ पहुँचे।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- जब दूतों ने इस प्रकार प्रश्न किया, तब देवशिरोमणि प्रजा के शासक भगवान् यमराज ने प्रसन्न होकर श्रीहरि के चरणकमलों का स्मरण करते हुए उनसे कहा।

यमराज ने कहा- दूतो! मेरे अतिरिक्त एक और ही चराचर जगत् के स्वामी हैं। उन्हीं में यह सम्पूर्ण जगत् सूत में वस्त्र के समान ओत-प्रोत है। उन्हीं के अंश, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर इस जगत् की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय करते हैं। उन्हीं ने इस सारे जगत् को नथे हुए बैल के समान अपने अधीन कर रखा है। मेरे प्यारे दूतों! जैसे किसान अपने बैलों को पहले छोटी-छोटी रस्सियों में बाँधकर फिर उन रस्सियों को एक बड़ी आड़ी रस्सी में बाँध देते हैं, वैसे ही जगदीश्वर भगवान् ने भी ब्रह्माणादि वर्ण और ब्रह्मचर्य आदि आश्रमरूप छोटी-छोटी नाम की रस्सियों में बाँधकर फिर सब नामों को वेदवाणीरूप बड़ी रस्सी में बाँध रखा है। इस प्रकार सारे जीव नाम एवं कर्मरूप बन्धन में बँधे हुए भयभीत होकर उन्हें ही अपना सर्वस्व भेंट कर रहे हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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