तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 45-56 का हिन्दी अनुवाद
महाराज स्वायम्भुव मनु को अपनी कुटी में आकर प्रणाम करते देख उन्होंने उन्हें आशीर्वाद से प्रसन्न किया और यथोचित आतिथ्य की रीति से उनका स्वागत-सत्कार किया। जब मनु जी उनकी पूजा ग्रहण कर स्वस्थचित्त से आसन पर बैठ गये, तब मुनिवर कर्दम ने भगवान् की आज्ञा का स्मरण कर उन्हें मधुर वाणी से प्रसन्न करते हुए इस प्रकार कहा- ‘देव! आप भगवान् विष्णु की पालनशक्तिरूप हैं, इसलिये आपका घूमना-फिरना निःसन्देह सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए ही होता है। आप साक्षात् विशुद्ध विष्णुस्वरूप हैं तथा भिन्न-भिन्न कार्यों के लिये सूर्य, चन्द्र, अग्नि, इन्द्र, वायु, यम, धर्म और वरुण आदि रूप धारण करते हैं; आपको नमस्कार है। आप मणियों से जड़े हुए जयदायक रथ पर सवार हो अपने प्रचण्ड धनुष की टंकार करते हुए उस रथ की घरघराहट से ही पापियों को भयभीत कर देते हैं और अपनी सेना के चरणों से रौंदे हुए भूमण्डल को कँपाते अपनी उस विशाल सेना को साथ लेकर पृथ्वी पर सूर्य के समान विचरते हैं। यदि आप ऐसा न करें तो चोर-डाकू भगवान् की बनायी हुई वर्णाश्रम धर्म की मर्यादा को तत्काल नष्ट कर दें तथा विषयलोलुप निरंकुश मानवों द्वारा सर्वत्र अधर्म फैल जाये। यदि आप संसार की ओर से निश्चिन्त हो जायें तो यह लोक दुराचारियों के पंजे में पड़कर नष्ट हो जाये। तो भी वीरवर! मैं आपसे पूछता हूँ कि इस समय यहाँ आपका आगमन किस प्रयोजन से हुआ है; मेरे लिये जो आज्ञा होगी, उसे मैं निष्कपट भाव से सहर्ष स्वीकार करूँगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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