श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 6 श्लोक 1-17

श्रीमद्भागवत माहात्म्य षष्ठ अध्याय

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श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) षष्ठ अध्यायः श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


सप्ताहयज्ञ की विधि

श्रीसनकादि जी कहते हैं—नारद जी! अब हम आपको सप्ताह श्रवण की विधि बताते हैं। यह विधि प्रायः लोगों की सहायता और धन से साध्य कही गयी है। पहले तो यत्नपूर्वक ज्योतिषी को बुलाकर मुहूर्त पूछना चाहिये तथा विवाह के लिये जिस प्रकार धन का प्रबन्ध किया जाता है उस प्रकार ही धन की व्यवस्था इसके लिये करनी चाहिये। कथा आरम्भ करने में भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, आषाढ़ और श्रावण—ये छः महीने श्रोताओं के लिये मोक्ष की प्राप्ति के कारण हैं। देवर्षे! इन महीनों में भी भद्रा-व्यतीपात आदि कुयोगों को सर्वथा त्याग देना चाहिये तथा दूसरे लोग जो उत्साही हों, उन्हें अपना सहायक बना लेना चाहिये। फिर प्रयत्न करके देश-देशान्तरों में यह संवाद भेजना चाहिये कि यहाँ कथा होगी, सब लोगों को सपरिवार पधारना चाहिये। जो स्त्री और शुद्रादि भगवत्कथा एवं संकीर्तन से दूर पड़ गये हैं। उनको भी सूचना हो जाय, ऐसा प्रबन्ध करना चाहिये। देश-देश में जो विरक्त वैष्णव और हरिकीर्तन के प्रेमी हों, उनके पास निमन्त्रणपत्र अवश्य भेजे। उसे लिखने की बिधि इस प्रकार बतायी गयी है।

‘महानुभावों! यहाँ सात दिन तक सत्पुरुषों का बड़ा दुर्लभ समागम रहेगा और अपूर्व रसमयी श्रीमद्भागवत की कथा होगी। आप लोग भगवद्रस के रसिक हैं, अतः श्रीभागवतामृत का पान करने के लिये प्रेमपूर्वक शीघ्र ही पधारने की कृपा करें। यदि आपको विशेष अवकाश न हो, तो भी एक दिन के लिये तो अवश्य ही कृपा करनी चाहिये; क्योंकि यहाँ का तो एक क्षण भी अत्यन्त दुर्लभ है’। इस प्रकार विनयपूर्वक उन्हें निमन्त्रित करे और जो लोग आयें, उनके लिये यथोचित निवास-स्थान का प्रबन्ध करे।

कथा का श्रवण किसी तीर्थ में, वन में अथवा अपने घर भी अच्छा माना गया है। जहाँ लम्बा-चौड़ा मैदान हो, वहीं कथास्थल रखना चाहिये। भूमि का शोधन, मार्जन और लेपन करके रंग-बिरंगी धातुओं से चौक पूरे। घर की सारी सामग्री उठाकर एक कोने में रख दे। पाँच दिन पहले से ही यत्नपूर्वक बहुत-से बिछाने के वस्त्र एकत्र कर ले तथा केले के खंभों से सुशोभित एक ऊँचा मण्डप तैयार कराये। उसे सब ओर फल, पुष्प, पत्र और चँदोवे से अलंकृत करे तथा चारों ओर झंडियाँ लगाकर तरह-तरह के सामानों से सजा दे। उस मण्डप में कुछ ऊँचाई पर सात विशाल लोकों की कल्पना करे और उनमें विरक्त ब्राह्मणों को बुला-बुलाकर बैठाये। आगे की ओर उनके लिये वहाँ यथोचित आसन तैयार रखे। इनके पीछे वक्ता के लिये भी एक दिव्य सिंहासन का प्रबन्ध करे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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