श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 5 श्लोक 16-30

श्रीमद्भागवत माहात्म्य पञ्चम अध्याय

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श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) पञ्चम अध्यायः श्लोक 16-30 का हिन्दी अनुवाद

वे कुलटाएँ धुन्धकारी की सारी सम्पत्ति समेटकर वहाँ से चंपत हो गयीं; उनके ऐसे न जाने कितने पति थे। और धुन्धकारी अपने कुकर्मों के कारण भयंकर प्रेत हुआ। वह बवंडर के रूप में सर्वदा दसों दिशाओं में भटकता रहता था तथा शीत-घाम से सन्तप्त और भूख-प्यास से व्याकुल होने के कारण ‘हा-दैव! हा दैव!’ चिल्लाता रहता था। परन्तु उसे कहीं भी कोई आश्रय न मिला। कुछ काल बीतने पर गोकर्ण ने भी लोगों के मुख से धुन्धकारी की मृत्यु का समाचार सूना। तब उसे अनाथ समझकर उन्होंने उसका गयाजी में श्राद्ध किया; और भी जहाँ-जहाँ वे जाते थे, उसका श्राद्ध अवश्य करते थे। इस प्रकार घूमते-घूमते गोकर्णजी अपने नगर में आये और रात्रि के समय दूसरों की दृष्टि से बचकर सीधे अपने घर के आँगन में सोने के लिये पहुँचे। वहाँ अपने भाई को सोया देख आधी रात के समय धुन्धकारी ने अपना बड़ा विकट रूप दिखाया। वह कभी भेड़ा, कभी हाथी, कभी भैंसा, कभी इन्द्र और कभी अग्नि का रूप धारण करता। अन्त में वह मनुष्य के आकार में प्रकट हुआ।

ये विपरीत अवस्थाएँ देखकर गोकर्ण ने निश्चय किया कि यह कोई दुर्गति को प्राप्त हुआ जीव है। तब उन्होंने उससे धैर्यपूर्वक पूछा।

गोकर्ण ने कहा—तू कौन है ? रात्रि के समय ऐसे भयानक रूप क्यों दिखा रहा है ? तेरी यह दशा कैसे हुई ? हमें बता तो सही—तू प्रेत है, पिशाच है अथवा कोई राक्षस है ?

सूतजी कहते हैं—गोकर्ण के इस प्रकार पूछने पर वह बार-बार जोर-जोर से रोने लगा। उसमें बोलने की शक्ति नहीं थी, इसलिये उसने केवल संकेतमात्र किया। तब गोकर्ण ने अंजलि में जल लेकर उसे अभिमन्त्रित करके उस पर छिड़का। इससे उसके पापों का कुछ शमन हुआ और वह इस प्रकार कहने लगा।

प्रेत बोला—‘मैं तुम्हारा भाई हूँ। मेरा नाम है धुन्धकारी। मैंने अपने ही दोष से अपना ब्राह्मणत्व नष्ट कर दिया। मेरे कुकर्मों की गिनती नहीं की जा सकती। मैं तो महान् अज्ञान में चक्कर काट रहा था। इसी से मैंने लोगों की बड़ी हिंसा की। अन्त में कुलटा स्त्रियों ने मुझे तडपा-तडपा कर मार डाला। इसी से अब प्रेतयोनि में पड़कर यह दुर्दशा भोग रहा हूँ। अब दैववश कर्म फल का उदय होने से मैं केवल वायुभक्षण करके जी रहा हूँ। भाई! तुम दया के समुद्र हो; अब किसी प्रकार जल्दी ही मुझे इस योनि से छुड़ाओ।’ गोकर्ण ने धुन्धकारी की सारी बातें सुनीं और तब उससे बोले।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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