श्रीमद्भागवत माहात्म्य तृतीय अध्याय
श्रीमद्भागवत माहात्म्य: तृतीय अध्यायः श्लोक 46-60 का हिन्दी अनुवाद
सूत जी कहते हैं- यह सुनकर राजा परीक्षित उद्धव जी को प्रणाम करके उनसे बोले। परीक्षित ने कहा- हरिदास उद्धव जी! आप निश्चिन्त होकर श्रीमद्भागवत कथा का कीर्तन करें। इस कार्य में मुझे जिस प्रकार की सहायता करनी आवश्यक हो, उसके लिये आज्ञा दें। सूत जी कहते हैं- परीक्षित का यह वचन सुनकर उद्धव जी मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुए और बोले। उद्धव जी ने कहा- राजन्! भगवान श्रीकृष्ण ने जब से इस पृथ्वीतल का परित्याग कर दिया है, तब से यहाँ अत्यन्त बलवान् कलियुग का प्रभुत्व हो गया है। जिस समय यह शुभ अनुष्ठान यहाँ आरम्भ हो जायेगा, बलवान् कलियुग अवश्य ही इसमें बहुत बड़ा विघ्न डालेगा। इसलिये तुम दिग्विजय के लिये जाओ और कलियुग को जीतकर अपने वश में करो। इधर मैं तुम्हारी सहायता से वैष्णवी रीति का सहारा लेकर एक महीने तक यहाँ श्रीमद्भागवत कथा का रसास्वादन कराऊँगा और इस प्रकार भागवत कथा के रस का प्रसार करके इन सभी श्रोताओं को भगवान मधुसुदन के नित्य गोलोक धाम पहुँचाऊँगा। सूत जी कहते हैं- उद्धव जी की बात सुनकर राजा परीक्षित पहले तो कलियुग पर विजय पाने के विचार से बड़े ही प्रसन्न हुए; परन्तु पीछे यह सोचकर कि मुझे भागवत कथा के श्रवण से वंचित ही रहना पड़ेगा, चिन्ता से व्याकुल हो उठे। उस समय उन्होंने उद्धव जी से अपना अभिप्राय इस प्रकार प्रकट किया। राजा परीक्षित ने कहा- हे तात! आपकी आज्ञा के अनुसार तत्पर होकर मैं कलियुग को तो अवश्य ही अपने वश में करूँगा, मगर श्रीमद्भागत की प्राप्ति मुझे कैसे होगी। मैं भी आपके चरणों की शरण में आया हूँ, अतः मुझ पर भी आपको अनुग्रह करना चाहिये। सूत जी कहते हैं- उनके इस वचन को सुनकर उद्धव जी पुनः बोले। उद्धव जी ने कहा- राजन्! तुम्हें तो किसी भी बात के लिये किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करनी चाहिये; क्योंकि इस भागवत शास्त्र इ प्रधान अधिकारी तो तुम्हीं हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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