श्रीमद्भागवत महापुराण पंचम स्कन्ध अध्याय 26 श्लोक 27-33

पंचम स्कन्ध: षड्-विंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: पंचम स्कन्ध: षड्-विंश अध्यायः श्लोक 27-33 का हिन्दी अनुवाद


जो कोई चोर अथवा राजा या राजपुरुष इस लोक में किसी के घर में आग लगा देते हैं, किसी को विष दे देते हैं अथवा गाँवों या व्यापारियों की टोलियों को लूट लेते हैं, उन्हें मरने के पश्चात् सारमेयादन नामक नरक में वज्र की-सी दाढ़ों वाले सात सौ बीस यमदूत कुत्ते बनकर बड़े वेग से काटने लगते हैं। इस लोक में जो पुरुष किसी की गवाही देने में, व्यापार में अथवा दान के समय किसी भी तरह झूठ बोलता है, वह मरने पर आधारशून्य अवीचिमान् नरक में पड़ता है। वहाँ उसे सौ योजन ऊँचे पहाड़ के शिखर से निचे को सिर करके गिराया जाता है। उस नरक की पत्थर की भूमि जल के समान जान पड़ती है। इसीलिये इसका नाम अवीचिमान् है। वहाँ गिराये जाने से उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो जाने पर भी प्राण नहीं निकलते, इसलिये इसे बार-बार ऊपर ले जाकर पटका जाता है।

जो ब्राह्मण या ब्राह्मणी अथवा व्रत में स्थित और कोई भी प्रमादवश मद्यपान करता है तथा जो क्षत्रिय या वैश्य सोमपान[1] करता है, उन्हें यमदूत अयःपान नाम के नरक में ले जाते हैं और उनकी छाती पर पैर रखकर उनके मुँह में आग से गलाया हुआ लोहा डालते हैं। जो पुरुष इस लोक में निम्न श्रेणी का होकर भी अपने को बड़ा मानने के कारण जन्म, तप, विद्या, आचार, वर्ण या आश्रम में अपने से बड़ों का विशेष सत्कार नहीं करता, वह जीता हुआ भी मरे के ही समान है। उसे मरने पर क्षारकर्दम नाम के नरक में नीचे को सिर करके गिराया जाता है और वहाँ उसे अनन्त पीड़ाएँ भोगनी पड़ती हैं।

जो पुरुष इस लोक में नरमेधादि के द्वारा भैरव, यक्ष, राक्षस आदि का यजन करते हैं और जो स्त्रियाँ पशुओं के समन पुरुषों को खा जाती हैं, उन्हें वे पशुओं की तरह मारे हुए पुरुष यमलोक में राक्षस होकर तरह-तरह की यातनाएँ देते हैं और रक्षोगण भोजन नामक नरक में कसाइयों के समान कुल्हाड़ी से काट-काटकर उसका लोहू पीते हैं तथा जिस प्रकार वे मांसभोजीपुरुष इस लोक में उनका मांस भक्षण करके आनन्दित होते थे, उसी प्रकार वे भी उनका रक्तपान करते और आनन्दित होकर नाचते-गाते हैं। इस लोक में जो लोग वन या गाँव के निरपराध जीवों को-जो सभी अपने प्राणों को रखना चाहते हैं-तरह-तरह के उपायों से फुसलाकर अपने पास बुला लेते हैं, फिर उन्हें काँटें से बेधकर या रस्सी से बाँधकर खिलवाड़ करते हुए तरह-तरह की पीड़ाएँ देते हैं, उन्हें भी मरने के पश्चात् यमयातनाओं के समय शूलप्रोत नामक नरक में शूलों से बेधा जाता है। उस समय जब उन्हें भूख-प्यास सताती है और कंक, बटेर आदि तीखी चोंचों वाले नरक के भयानक पक्षी नोचने लगते हैं, तब अपने किये हुए सारे पाप याद आ जाते हैं।

राजन्! इस लोक में जो सर्पों के समान उग्र स्वभावपुरुष दूसरे जीवों को पीड़ा पहुँचाते हैं, वे मरने पर दन्दशूक नाम के नरक में गिरते हैं। वहाँ पाँच-पाँच, सात-सात मुँह वाले सर्प उनके समीप आकर उन्हें चूहों की तरह निगल जाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. क्षत्रियों एवं वैश्यों के लिये शास्त्र में सोमपान का निषेध है।

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