श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 34 श्लोक 27-32

दशम स्कन्ध: चतुस्त्रिंश अध्याय (पूर्वार्ध)

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श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: चतुस्त्रिंश अध्याय श्लोक 27-32 का हिन्दी अनुवाद

दोनों भाइयों ने देखा कि जैसे कोई डाकू गौओं को लूट ले जाय, वैसे ही यह यक्ष हमारी प्रेयसियों को लिये जा रहा है और वे ‘हा कृष्ण! हा राम!’ पुकारकर रो-पीट रही हैं। उसी समय दोनों भाई उसकी ओर दौड़ पड़े। ‘डरो मत, डरो मत’ इस प्रकार अभयवाणी कहते हुए हाथ में शालका वृक्ष लेकर बड़े वेग से क्षण भर में ही उस नीच यक्ष के पास पहुँच गये। यक्ष ने देखा कि काल और मृत्यु के समान ये दोनों भाई मेरे पास आ पहुँचे। तब वह मूढ़ घबड़ा गया।

उसने गोपियों को वहीं छोड़ दिया, स्वयं प्राण बचाने के लिये भागा। तब स्त्रियों की रक्षा करने के लिये बलराम जी तो वहीं खड़े रहे गये, परन्तु भगवान श्रीकृष्ण जहाँ-जहाँ वह भागकर गया, उसके पीछे-पीछे दौड़ते गये। वे चाहते थे कि उसके सिर की चूड़ामणि निकाल लें। कुछ ही दूर जाने पर भगवान ने उसे पकड़ लिया और उस दुष्ट के सिर पर कसकर एक घूँसा ज़माया और चूड़ामणि के साथ उसका सिर भी धड़ से अलग कर दिया। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण शंखचूड को मारकर और वह चमकीली मणि लेकर लौट आये तथा सब गोपियों के सामने ही उन्होंने बड़े प्रेम से वह मणि बड़े भाई बलराम जी को दे दी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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