एकादश स्कन्ध: प्रथम अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: प्रथम अध्याय श्लोक 21-24 का हिन्दी अनुवाद
परीक्षित! उस लोहे के टुकड़े को एक मछली निगल गयी और चूरा तरंगों के साथ बह-बहकर समुद्र के किनारे आ लगा। वह थोड़े दिनों में एरक (बिना गाँठ की एक घास) के रूप में उग आया। मछली मारने वाले मछुओं ने समुद्र में दूसरी मछलियों के साथ उस मछली को भी पकड़ लिया। उसके पेट में जो लोहे का टुकड़ा था, उसको जरा नामक व्याध ने अपने बाण के नोक में लगा लिया। भगवान सब कुछ जानते थे। वे इस शाप को उलट भी सकते थे। फिर भी उन्होंने ऐसा उचित न समझा। कालरूपधारी प्रभु ने ब्राह्मणों के शाप का अनुमोदन ही किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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