श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 19-44

तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 29-44 का हिन्दी अनुवाद

वह तुम्हारा वीर्य अपने गर्भ में धारणकर उससे नौ कन्याएँ उत्पन्न करेगी और फिर तुम्हारी उन कन्याओं से लोकरीति के अनुसार मरीचि आदि ऋषिगण पुत्र उत्पन्न करेंगी। तुम भी मेरी आज्ञा का अच्छी तरह पालन करने से शुद्धचित्त हो, फिर अपने सब कर्मों का फल मुझे अर्पण कर मुझको ही प्राप्त होओगे। जीवों पर दया करते हुए तुम आत्मज्ञान प्राप्त करोगे और फिर सबको अभयदान दे अपने सहित सम्पूर्ण जगत् को मुझमें और मुझको अपने में स्थित देखोगे। महामुने! मैं भी अपने अंश-कलारूप से तुम्हारे वीर्य द्वारा तुम्हारी पत्नी देवहूति के गर्भ में अवतीर्ण होकर सांख्य शास्त्र की रचना करूँगा ।

मैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी! कर्दम ऋषि से इस प्रकार सम्भाषण करके, इन्द्रियों के अन्तर्मुख होने पर प्रकट होने वाले श्रीहरि सरस्वती नदी से घिरे हुए बिन्दुसर-तीर्थ से (जहाँ कर्दम ऋषि तप कर रहे थे) अपने लोक को चले गये। भगवान् के सिद्ध मार्ग (वैकुण्ठ मार्ग) की सभी सिद्धेश्वर प्रशंसा करते हैं। वे कर्दमजी के देखते-देखते अपने लोक को सिधार गये। उस समय गरुड़जी के पक्षों से जो साम की आधार भूता ऋचाएँ निकल रही थीं, उन्हें वे सुनते जाते थे । विदुरजी! श्रीहरि के चले जाने पर भगवान् कर्दम उनके बताये हुए समय की प्रतीक्षा करते हुए बिन्दु-सरोवर पर ही ठहरे रहे। वीरवर! इधर मनुजी भी महारानी शतरूपा के साथ सुवर्ण जटित रथ पर सवार होकर तथा उस पर अपनी कन्या को भी बिठाकर पृथ्वी पर विचरते हुए, जो दिन भगवान् ने बताया था, उसी दिन शान्ति परायण महर्षि कर्दम के उस आश्रम पर पहुँचे ।
सरस्वती के जल से भरा हुआ यह बिन्दु सरोवर वह स्थान है, जहाँ अपने शरणागत भक्त कर्दम के प्रति उत्पन्न हुई अत्यन्त करुणा के वशीभूत हुए भगवान् के नेत्रों से आँसुओं की बूँदें गिरी थीं। यह तीर्थ बड़ा पवित्र है, इसका जल कल्याणमय और अमृत के समान मधुर है तथा महर्षिगण सदा इसका सेवन करते हैं। उस समय बिन्दु सरोवर पवित्र वृक्ष-लताओं से घिरा हुआ था, जिनमें तरह-तरह की बोली बोलने वाले पवित्र मृग और पक्षी रहते थे, वह स्थान सभी ऋतुओं के फल और फूलों से सम्पन्न था और सुन्दर वन श्रेणी भी उसकी शोभा बढ़ाती थी। वहाँ झुंड-के-झुंड मतवाले पक्षी चहक रहे थे, मतवाले भौंरें मंडरा रहे थे, उन्मत्त मयूर अपने पिच्छ फैला-फैलाकर नट की भाँति नृत्य कर रहे थे और मतवाले कोकिल कुहू-कुहू करके मानो एक-दूसरे को बुला रहे थे। वह आश्रम कदम्ब, चम्पक, अशोक, करंज, बकुल, असन, कुन्द, मन्दार, कुटज और नये-नये आम के वृक्षों से अलंकृत था। वहाँ जलकाग, बत्तख आदि जल पर तैरने वाले पक्षी हंस, कुरर, जलमुर्ग, सारस, जकवा और चकोर मधुर स्वर से कलरव कर रहे थे। हरिन, सूअर, स्याही, नीलगाय, हाथी, लंगूर, सिंह, वानर, नेवले और कस्तूरी मृग आदि पशुओं से भी वह आश्रम घिरा हुआ था ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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