तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: एकविंश अध्यायः श्लोक 29-44 का हिन्दी अनुवाद
वह तुम्हारा वीर्य अपने गर्भ में धारणकर उससे नौ कन्याएँ उत्पन्न करेगी और फिर तुम्हारी उन कन्याओं से लोकरीति के अनुसार मरीचि आदि ऋषिगण पुत्र उत्पन्न करेंगी। तुम भी मेरी आज्ञा का अच्छी तरह पालन करने से शुद्धचित्त हो, फिर अपने सब कर्मों का फल मुझे अर्पण कर मुझको ही प्राप्त होओगे। जीवों पर दया करते हुए तुम आत्मज्ञान प्राप्त करोगे और फिर सबको अभयदान दे अपने सहित सम्पूर्ण जगत् को मुझमें और मुझको अपने में स्थित देखोगे। महामुने! मैं भी अपने अंश-कलारूप से तुम्हारे वीर्य द्वारा तुम्हारी पत्नी देवहूति के गर्भ में अवतीर्ण होकर सांख्य शास्त्र की रचना करूँगा । मैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी! कर्दम ऋषि से इस प्रकार सम्भाषण करके, इन्द्रियों के अन्तर्मुख होने पर प्रकट होने वाले श्रीहरि सरस्वती नदी से घिरे हुए बिन्दुसर-तीर्थ से (जहाँ कर्दम ऋषि तप कर रहे थे) अपने लोक को चले गये। भगवान् के सिद्ध मार्ग (वैकुण्ठ मार्ग) की सभी सिद्धेश्वर प्रशंसा करते हैं। वे कर्दमजी के देखते-देखते अपने लोक को सिधार गये। उस समय गरुड़जी के पक्षों से जो साम की आधार भूता ऋचाएँ निकल रही थीं, उन्हें वे सुनते जाते थे ।
विदुरजी! श्रीहरि के चले जाने पर भगवान् कर्दम उनके बताये हुए समय की प्रतीक्षा करते हुए बिन्दु-सरोवर पर ही ठहरे रहे। वीरवर! इधर मनुजी भी महारानी शतरूपा के साथ सुवर्ण जटित रथ पर सवार होकर तथा उस पर अपनी कन्या को भी बिठाकर पृथ्वी पर विचरते हुए, जो दिन भगवान् ने बताया था, उसी दिन शान्ति परायण महर्षि कर्दम के उस आश्रम पर पहुँचे । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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