श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 5 श्लोक 60-72

श्रीमद्भागवत माहात्म्य पञ्चम अध्याय

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श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) पञ्चम अध्यायः श्लोक 60-72 का हिन्दी अनुवाद


अन्त में यदि इसे गाड़ दिया जाता है तो इसके कीड़े बन जाते हैं; कोई पशु खा जाता है तो यह विष्ठा हो जाता है और अग्नि में जला दिया जाता है तो भस्म की ढेरी हो जाता है। ये तीन ही इसकी गतियाँ बतायी गयी हैं। ऐसे अस्थिर शरीर से मनुष्य अविनाशी फल देने वाला काम क्यों नहीं बना लेता? जो अन्न प्रातःकाल पकाया जाता है, वह सायंकाल तक बिगड़ जाता है; फिर उसी के रस से पुष्ट हुए शरीर की नित्यता कैसी। इस लोक में सप्ताहश्रवण करने से भगवान् की शीघ्र ही प्राप्ति हो सकती है। अतः सब प्रकार के दोषों की निवृत्ति के लिये एकमात्र यही साधन है। जो लोग भागवत की कथा से वंचित हैं, वे तो जल में बुदबुदे और जीवों में मच्छरों के समान केवल मरने के लिये ही पैदा होते हैं। भला, प्रभाव से जड़ और सूखे हुए बाँस की गाँठे फट सकती हैं, उस भागवत कथा का श्रवण करने से चित्त की गाँठों का खुल जाना कौन बड़ी बात है। सप्ताहश्रवण करने से मनुष्य के हृदय की गाँठ खुल जाती है, उसके समस्त संशय छिन्न-भिन्न हो जाते हैं और सारे कर्म क्षीण हो जाते हैं। यह भागवत कथा रूप तीर्थ संसार के कीचड़ को ढोने में बड़ा ही पटु है। विद्वानों का कथन है कि जब यह हृदय में स्थित हो जाता है, तब मनुष्य की मुक्ति निश्चित ही समझनी चाहिये। जिस समय धुन्धकारी ये सब बातें कह रहा था, जिसके लिये बैकुण्ठवासी पार्षदों के सहित एक विमान उतरा; उससे सब ओर मण्डलाकार प्रकाश फैल रहा था। सब लोगों के सामने ही धुन्धकारी उस विमान पर चढ़ गया। तब उस विमान पर आये हुए पार्षदों को देखकर उनसे गोकर्ण ने यह बात कही।

गोकर्ण ने पूछा—भगवान् के प्रिय पार्षदों! यहाँ हमारे अनेकों शुद्धहृदय श्रोतागण हैं, उन सबके लिये आप लोग एक साथ बहुत-से विमान क्यों नहीं लाये? हम देखते हैं कि यहाँ सभी ने समान रूप से कथा सुनी है, फिर फल में इस प्रकार का भेद क्यों हुआ, यह बताइये।

भगवान के सेवकों ने कहा—हे मानद! इस फल भेद का कारण इनके श्रवण का भेद ही है। यह ठीक है कि श्रवण तो सबने समान रूप से ही किया है, किन्तु इसके-जैसा मनन नहीं किया। इसी से एक साथ भजन करने पर भी उसके फल में भेद रहा। इस प्रेत ने सात दिनों तक निराहार रहकर श्रवण किया था, तथा सुने हुए विषय स्थिरचित्त से यह खूब मनन-निदिध्यासन भी करता रहता था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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