श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 5 श्लोक 73-85

श्रीमद्भागवत माहात्म्य पञ्चम अध्याय

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श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) पञ्चम अध्यायः श्लोक 73-85 का हिन्दी अनुवाद

जो ज्ञान दृढ़ नहीं होता, वह व्यर्थ हो जाता है। इसी प्रकार ध्यान न देने से श्रवण का, संदेह से मन्त्र का और चित्त के इधर-उधर भटकते रहने से जप का भी कोई फल नहीं होता। वैष्णवहीन देश, अपात्र को कराया हुआ श्राद्ध का भोजन, अश्रोत्रिय को दिया हुआ दान एवं आचारहीन कुल—इन सबका नाश हो जाता है। गुरुवचनों में विश्वास, दीनता का भाव, मन के दोषों पर विजय और कथा में चित्त की एकाग्रता इत्यादि नियमों का यदि पालन किया जाय तो श्रवण का यथार्थ फल मिलता है। यदि ये श्रोता फिर से श्रीमद्भागवत की कथा सुनें तो निश्चय ही सबको वैकुण्ठ की प्राप्ति होगी। और गोकर्णजी! आपको तो भगवान् स्वयं आकर गोलोकधाम में ले जायेंगे। यों कहकर वे सब पार्षद हरिकीर्तन करते वैकुण्ठलोक को चले गये। श्रावण मास में गोकर्णजी ने फिर उसी प्रकार सप्ताहक्रम से कथा कही और उन श्रोताओं ने उसे फिर सुना।

नारद जी! इस कथा की समाप्ति पर जो कुछ हुआ, वह सुनिये। वहाँ भक्तों से भरे हुए विमानों के साथ भगवान् प्रकट हुए। सब ओर से खूब जय-जयकार और नमस्कार की ध्वनियाँ होने लगीं। भगवान स्वयं हर्षित होकर अपने पांचजन्य शंख की ध्वनि करने लगे और उन्होंने गोकर्ण को हृदय से लगाकर अपने ही समान बना लिया। उन्होंने क्षणभर में ही अन्य सब श्रोताओं को भी मेघ के समान श्यामवर्ण, रेशमी पीताम्बरधारी तथा किरीट और कुण्डलादि से विभूषित कर दिया। उस गाँव में कुत्ते और चाण्डाल पर्यन्त जितने भी जीव थे, वे सभी गोकर्णजी की कृपा से विमानों पर चढ़ा लिये गये। तथा जहाँ योगिजन जाते हैं, उस भगवद्धाम में वे भेज दिये गये। इस प्रकार भक्तवत्सल भगवान् श्रीकृष्ण कथा श्रवण से प्रसन्न होकर गोकर्णजी को साथ ले अपने ग्वालबालों के प्रिय गोलोकधाम में चले गये। पूर्वकाल में जैसे अयोध्यावासी भगवान श्रीराम के साथ साकेतधाम सिधारे थे, उसी प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण उन सबको योगिदुर्लभ गोलोकधाम को ले गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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