श्रीमद्भागवत महापुराण षष्ठ स्कन्ध अध्याय 14 श्लोक 56-61

षष्ठ स्कन्ध:चतुर्दश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: चतुर्दश अध्यायः श्लोक 56-61 का हिन्दी अनुवाद


फिर वे अपने मृत पुत्र की ओर देखकर कहने लगीं- ‘बेटा! मैं तुम्हारे बिना अनाथ और दीन हो रही हूँ। मुझे छोड़कर इस प्रकार चले जाना तुम्हारे लिये उचित नहीं है। तनिक आँख खोलकर देखो तो सही, तुम्हारे पिताजी तुम्हारे वियोग में कितने शोक-सन्तप्त हो रहे हैं।

बेटा! जिस घोर नरक को निःसन्तान पुरुष बड़ी कठिनाई से पार कर पाते हैं, उसे हम तुम्हारे सहारे अन्यास ही पार कर लेंगे। अरे बेटा! तुम इस यमराज के साथ दूर मत जाओ। यह तो बड़ा निर्दयी है।

मेरे प्यारे लल्ला! ओ राजकुमार! उठो! बेटा! देखो, तुम्हारे साथी बालक तुम्हें खेलने के लिये बुला रहे हैं। तुम्हें सोते-सोते बहुत देर हो गयी, अब भूख लगी होगी। उठो, कुछ खा लो और कुछ नहीं तो मेरा दूध ही पी लो और अपने स्वजन-सम्बन्धी हम लोगों का शोक दूर करो।

प्यारे लाल! आज मैं तुम्हारे मुखारविन्द पर वह भोली-भाली मुसकराहट और आनन्द भरी चितवन नहीं देख रही हूँ। मैं बड़ी अभागिनी हूँ। हाय-हाय! अब भी मुझे तुम्हारी सुमधुर तोतली बोली नहीं सुनायी दे रही है। क्या सचमुच निष्ठुर यमराज तुम्हें उस परलोक में ले गया, जहाँ से फिर कोई लौटकर नहीं आता?

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! जब सम्राट् चित्रकेतु ने देखा कि मेरी रानी अपने मृत पुत्र के लिये इस प्रकार भाँति-भाँति से विलाप कर रही है, तब वे शोक से अत्यन्त सन्तप्त हो फूट-फूटकर रोने लगे। राजा-रानी के इस प्रकार विलाप करने पर उनके अनुगामी स्त्री-पुरुष भी दुःखित होकर रोने लगे। इस प्रकार सारा नगर ही शोक से अचेत-सा हो गया।

राजन्! महर्षि अंगिरा और देवर्षि नारद ने देखा कि राजा चित्रकेतु पुत्रशोक के कारण चेतनाहीन हो रहे हैं, यहाँ तक कि उन्हें समझाने वाला भी कोई नहीं है। तब वे दोनों वहाँ आये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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