नवम स्कन्ध: पञ्चदशोऽध्याय: अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: पञ्चदश अध्यायः श्लोक 29-41 का हिन्दी अनुवाद
भगवान् परशुराम जी की गति मन और वायु के समान थी। बस, वे शत्रु की सेना काटते ही जा रहे थे। जहाँ-जहाँ वे अपने फरसे का प्रहार करते, वहाँ-वहाँ सारथि और वाहनों के साथ बड़े-बड़े वीरों की बाँहें, जाँघें और कंधे कट-कटकर पृथ्वी पर गिरते जाते थे। हैहयाधिपति अर्जुन ने देखा कि मेरी सेना के सैनिक, उनके धनुष, ध्वजाएँ और ढाल भगवान् परशुराम के फरसे और बाणों से कट-कटकर खून से लथपथ रणभूमि में गिर गये हैं, तब उसे बड़ा क्रोध आया और वह स्वयं भिड़ने के लिये आ धमका। उसने एक साथ ही अपनी हजार भुजाओं से पाँच सौ धनुषों पर बाण चढ़ायें और परशुराम जी पर छोड़े। परन्तु परशुराम जी तो समस्त शस्त्रधारियों के शिरोमणि ठहरे। उन्होंने अपने एक धनुष पर छोड़े हुए बाणों से ही एक साथ सबको काट डाला। अब हैहयाधिपति अपने हाथों से पहाड़ और पेड़ उखाड़कर बड़े वेग से युद्धभूमि में परशुराम जी की ओर झपटा। परन्तु परशुराम जी ने अपनी तीखी धार वाले फरसे से बड़ी फुर्ती के साथ उसकी साँपों के समान भुजाओं को काट डाला। जब उसकी बाँहें कट गयीं, तब उन्होंने पहाड़ की चोटी की तरह उसका ऊँचा सिर धड़ से अलग कर दिया। पिता के मर जाने पर उसके दस हजार लड़के डरकर भाग गये। परीक्षित! विपक्षी वीरों के नाशक परशुराम जी ने बछड़े के साथ कामधेनु लौटा ली। वह बहुत ही दुःखी हो रही थी। उन्होंने उसे अपने आश्रम पर लाकर पिताजी को सौंप दिया और माहिष्मती में सहस्रबाहु ने तथा उन्होंने जो कुछ किया था, सब अपने पिताजी तथा भाइयों को कह सुनाया। सब कुछ सुनकर जमदग्नि मुनि ने कहा- ‘हाय, हाय, परशुराम! तुमने बड़ा पाप किया। राम, राम! तुम बड़े वीर हो; परन्तु सर्वदेवमय नरदेव का तुमने व्यर्थ ही वध किया। बेटा! हम लोग ब्राह्मण हैं। क्षमा के प्रभाव से ही हम संसार में पूजनीय हुए हैं। और तो क्या, सबके दादा ब्रह्मा जी भी क्षमा के बल से ही ब्रह्मपद को प्राप्त हुए हैं। ब्राह्मणों की शोभा क्षमा के द्वारा ही सूर्य की प्रभा के समान चमक उठती है। सर्वशक्तिमान् भगवान् श्रीहरि भी क्षमावानों पर ही शीघ्र प्रसन्न होते हैं। बेटा! सार्वभौम राजा का वध ब्राह्मण की हत्या से भी बढ़कर है। जाओ, भगवान् का स्मरण करते हुए तीर्थों का सेवन करके अपने पापों को धो डालो’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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