तृतीय स्कन्ध: द्वितीय अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: द्वितीय अध्यायः श्लोक 26-34 का हिन्दी अनुवाद
इसी समय जब कंस ने उन्हें मारने के लिये बहुत-से मायावी और मनमाना रूप धारण करने वाले राक्षस भेजे, तब उनको खेल-ही-खेल में भगवान् ने मार डाला-जैसे बालक खिलौनों को तोड़-फोड़ डालता है। कालिय नाग का दमन करके विष मिला हुआ जल पीने से मरे हुए ग्वालबालों और गौओं को जीवित कर उन्हें कालियदह का निर्दोष जल पीने की सुविधा दी। भगवान् श्रीकृष्ण ने बढ़े हुए धन का सद्व्यय कराने की इच्छा से श्रेष्ठ ब्राह्मणों के द्वारा नन्दबाबा से गोवर्धन पूजा रूप गोयज्ञ करवाया। भद्र! इससे अपना मान भंग होने के कारण जब इन्द्र ने क्रोधित होकर व्रज का विनाश करने के लिये मूसलधार जल बरसाना आरम्भ किया, तब भगवान् ने करुणावश खेल-ही-खेल में छत्ते के समान गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और अत्यन्त घबराये हुए व्रजवासियों की तथा उनके पशुओं की रक्षा की। सन्ध्या के समय जब सारे वृन्दावन में शरत् के चन्द्रमा की चाँदनी छिटक जाती, तब श्रीकृष्ण उसका सम्मान करते हुए मधुर गान करते और गोपियों के मण्डल की शोभा बढ़ाते हुए उनके साथ रासविहार करते। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज