श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध अध्याय 19 श्लोक 32-38

तृतीय स्कन्ध: एकोनविंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: एकोनविंश अध्यायः श्लोक 32-38 का हिन्दी अनुवाद


भगवान् अवतार लेकर जैसी लीलाएँ करते हैं और जिस प्रकार उन्होंने भीषण संग्राम में खिलौने की भाँति महापराक्रमी हिरण्याक्ष का वध कर डाला, मित्र विदुर जी! वह सब चरित्र जैसा मैंने गुरुमुख से सुना था, तुम्हें सुना दिया।

सूत जी कहते हैं- शौनक जी! मैत्रेय जी के मुख से भगवान् की कथा सुनकर परमभागवत विदुर जी को बड़ा आनन्द हुआ। जब अन्य पवित्रकीर्ति और परमयशस्वी महापुरुषों का चरित्र सुनने से ही बड़ा आनन्द होता है, तब श्रीवत्सधारी भगवान् की ललितललाम लीलाओं की तो बात ही क्या है।

जिस समय ग्राह के पकड़ने पर गजराज प्रभु के चरणों का ध्यान करने लगे और उनकी हथिनियाँ दुःख से चिग्घाड़ने लगीं, उस समय जिन्होंने उन्हें तत्काल दुःख से छुड़ाया और जो सब ओर से निराश होकर अपनी शरण में आये हुए सरल हृदय भक्तों से सहज में ही प्रसन्न हो जाते हैं, किंतु दुष्ट पुरुषों के लिये अत्यन्त दुराराध्य हैं-उन पर जल्दी प्रसन्न नहीं होते, उन प्रभु के उपकारों को जानने वाला कौन ऐसा पुरुष है, जो उनका सेवन न करेगा?

शौनकादि ऋषियों! पृथ्वी का उद्धार करने के लिये वराहरूप धारण करने वाले श्रीहरि की इस हिरण्याक्ष-वध नामक परम अद्भुत लीला को जो पुरुष सुनता, गाता अथवा अनुमोदन करता है, वह ब्रह्महत्या-जैसे घोर पाप से भी सहज में ही छूट जाता हैं। यह चरित्र अत्यन्त पुण्यप्रद परमपवित्र, धन और यश की प्राप्ति कराने वाला तथा आयुवर्धक और कामनाओं की पूर्ति करने वाला तथा युद्ध में प्राण और इन्द्रियों की शक्ति बढ़ाने वाला है। जो लोग इसे सुनते हैं, उन्हें अन्त में श्रीभगवान् का आश्रय प्राप्त होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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