श्रीमद्भागवत महापुराण चतुर्थ स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 61-73

चतुर्थ स्कन्ध: अष्टम अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: अष्टम अध्यायः श्लोक 61-73 का हिन्दी अनुवाद


यदि उपासक को इन्द्रियसम्बन्धी भोगों से वैराग्य हो गया हो तो वह मोक्ष प्राप्ति के लिये अत्यन्त भक्तिपूर्वक अविच्छिन्नभाव से भगवान् का भजन करे।

श्रीनारद जी से इस प्रकार उपदेश पाकर राजकुमार ध्रुव ने परिक्रमा करके उन्हें प्रणाम किया। तदनन्तर उन्होंने भगवान् के चरणचिह्नों से अंकित परमपवित्र मधुवन की यात्रा की। ध्रुव के तपोवन की ओर चले जाने पर नारद जी महाराज उत्तानपाद के महल में पहुँचे। राजा ने उनकी यथायोग्य उपचारों से पूजा की; तब उन्होंने आराम से आसन पर बैठकर राजा से पूछा।

श्रीनारद जी ने कहा- राजन्! तुम्हारा मुख सूखा हुआ है, तुम बड़ी देर से किस सोच-विचार में पड़े हो? तुम्हारे धर्म, अर्थ और काम में से किसी में कोई कमी तो नहीं आ गयी?

राजा ने कहा- ब्रह्मन्! मैं बड़ा ही स्त्रैण और निर्दय हूँ। हाय, मैंने अपने पाँच वर्ष के नन्हे-से बच्चे को उसकी माता के साथ घर से निकाल दिया। मुनिवर! वह बड़ा ही बुद्धिमान् था। उसका कमल-सा मुख भूख से कुम्हला गया होगा, वह थककर कहीं रास्ते में पड़ गया होगा। ब्रह्मन्! उस असहाय बच्चे को वन में कहीं भेड़िये न खा जायें। अहो! मैं कैसा स्त्री का गुलाम हूँ! मेरी कुटिलता तो देखिये- वह बालक प्रेमवश मेरी गोद में चढ़ना चाहता था, किन्तु मुझ दुष्ट ने उसका तनिक भी आदर नहीं किया।

श्रीनारद जी ने कहा- राजन्! तुम अपने बालक की चिन्ता मत करो। उसके रक्षक भगवान् हैं। तुम्हें उसके प्रभाव का पता नहीं है, उसका यश सारे जगत् में फैल रहा है। वह बालक बड़ा समर्थ है। जिस काम को बड़े-बड़े लोकपाल भी नहीं कर सके, उसे पूरा करके वह शीघ्र ही तम्हारे पास लौट आयेगा। उसके कारण तुम्हारा यश भी बहुत बढ़ेगा।

श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- देवर्षि नारद जी की बात सुनकर महाराज उत्तानपाद राजपाट की ओर से उदासीन होकर निरन्तर पुत्र की ही चिन्ता में रहने लगे। इधर ध्रुव जी ने मधुवन में पहुँचकर यमुना जी में स्नान किया और उस रात पवित्रतापूर्वक उपवास करके श्रीनारद जी के उपदेशानुसार एकाग्रचित्त से परमपुरुष श्रीनारायण की उपासना आरम्भ कर दी। उन्होंने तीन-तीन रात्रि के अन्तर से शरीर निर्वाह के लिये केवल कैथ और बेर के फल खाकर श्रीहरि की उपासना करते हुए एक मास व्यतीत किया। दूसरे महीने में उन्होंने छः-छः दिन के पीछे सूखे घास और पत्ते खाकर भगवान् का भजन किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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