श्रीमद्भागवत महापुराण चतुर्थ स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 30-52

चतुर्थ स्कन्ध: द्वादश अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: द्वादश अध्यायः श्लोक 30-52 का हिन्दी अनुवाद


इतने में ही ध्रुव जी ने देखा कि काल मूर्तिमान् होकर उनके सामने खड़ा है। तब वे मृत्यु के सिर पर पैर रखकर उस समय अद्भुत विमान पर चढ़ गये। उस समय आकाश में दुन्दुभि, मृदंग और ढोल आदि बाजे बजने लगे, श्रेष्ठ गन्धर्व गान करने लगे और फूलों की वर्षा होने लगी। विमान पर बैठकर ध्रुव जी ज्यों-ही भगवान् के धाम को जाने के लिये तैयार हुए, त्यों-ही उन्हें माता सुनीति का स्मरण हो आया। वे सोचने लगे, ‘क्या मैं बेचारी माता को छोड़कर अकेला ही दुर्लभ वैकुण्ठधाम को जाऊँगा? नन्द और सुनन्द ने ध्रुव के हृदय की बात जानकर उन्हें दिखलाया कि देवी सुनीति आगे-आगे दूसरे विमान पर जा रही हैं। उन्होंने क्रमशः सूर्य आदि सभी ग्रह देखे। मार्ग में जहाँ-तहाँ विमानों पर बैठे हुए देवता उनकी प्रशंसा करते हुए फूलों की वर्षा करते जाते थे।

उस दिव्य विमान पर बैठकर ध्रुव जी त्रिलोकी को पारकर सप्तर्षिमण्डल से भी ऊपर भगवान् विष्णु के नित्यधाम में पहुँचे। इस प्रकार उन्होंने अविचल गति प्राप्त की। यह दिव्य धाम अपने ही प्रकाश से प्रकाशित है, इसी के प्रकाश से तीनों लोक प्रकाशित हैं। इसमें जीवों पर निर्दयता करने वाले पुरुष नहीं जा सकते। यहाँ तो उन्हीं की पहुँच होती है, जो दिन-रात प्राणियों के कल्याण के लिये शुभ कर्म ही करते रहते हैं। जो शान्त, समदर्शी, शुद्ध और सब प्राणियों को प्रसन्न रखने वाले हैं तथा भगवद्भक्तों को ही अपना एकमात्र सच्चा सुहृद मानते हैं- ऐसे लोग सुगमता से ही इस भगवद्धाम को पाप्त कर लेते हैं। इस प्रकार उत्तानपाद के पुत्र भगवत्परायण श्रीध्रुव जी तीनों लोकों के ऊपर उसकी निर्मल चूड़ामणि के समान विराजमान हुए।

कुरुनन्दन! जिस प्रकार दायँ चलाने के समय खम्भे के चारों ओर बैल घूमते हैं, उसी प्रकार यह गम्भीर वेग वाला ज्योतिश्चक्र उस अविनाशी लोक के आश्रय ही निरन्तर घूमता रहता है। उसकी महिमा देखकर देवर्षि नारद ने प्रचेताओं की यज्ञशाला में वीणा बजाकर ये तीन श्लोक गाये थे।

नारद जी ने कहा- इसमें सन्देह नहीं, पतिपरायणा सुनीति के पुत्र ध्रुव ने तपस्या द्वारा अद्भुत शक्ति संचित करके जो गति पायी है, उसे भागवतधर्मों की आलोचना करके वेदवाणी मुनिगण भी नहीं पा सकते; फिर राजाओं की तो बात ही क्या है। अहो! वे पाँच वर्ष की अवस्थाओं में ही सौतेली माता के वाग्बाणों से मर्माहत होकर दुःखी हृदय से वन में चले गये और मेरे उपदेश के अनुसार आचरण करके ही उन अजेय प्रभु को जीत लिया, जो केवल अपने भक्तों के गुणों से ही वश में होते हैं। ध्रुव जी ने तो पाँच-छः वर्ष की अवस्था में कुछ दिनों की तपस्या से ही भगवान् को प्रसन्न करके उनका परमपद प्राप्त कर लिया; किन्तु उनके अधिकृत किये हुए इस पद को भूमण्डल में कोई दूसरा क्षत्रिय क्या वर्षो तक तपस्या करके भी पा सकता है?

श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- विदुर जी! तुमने मुझसे उदारकीर्ति ध्रुव जी के चरित्र के विषय में पूछा था, सो मैंने तुम्हें वह पूरा-का-पूरा सुना दिया। साधुजन इस चरित्र की बड़ी प्रशंसा करते हैं। यह धन, यश और आयु की वृद्धि करने वाला, परम पवित्र और अत्यत्न मंगलमय है। इससे स्वर्ग और अविनाशी पद भी प्राप्त हो सकता है। यह देवत्व की प्राप्ति कराने वाला, बड़ा ही प्रशंसनीय और समत पापों का नाश करने वाला है। भगवद्भक्त ध्रुव के इस पवित्र चरित्र को जो श्रद्धापूर्वक बार-बार सुनते हैं, उन्हें भगवान् की भक्ति प्राप्त होती है, जिससे उनके सभी दुःखों का नाश हो जाता है। इसे श्रवण करने वाले को शीलादि गुणों की प्राप्ति होती है, जो महत्त्व चाहते हैं, उन्हें महत्त्व की प्राप्ति कराने वाला स्थान मिलता है, जो तेज चाहते हैं, उन्हें तेज प्राप्त होता है और मनस्वियों का मान बढ़ता है।

पवित्रकीर्ति ध्रुव जी के इस महान् चरित्र का प्रातः और सायंकाल ब्रह्माणादि द्विजातियों के समान में एकाग्रचित्त से कीर्तन करना चाहिये। भगवान् के परम पवित्र चरणों की शरण में रहने वाला जो पुरुष इसे निष्कामभाव से पूर्णिमा, अमावस्या, द्वादशी, श्रवण नक्षत्र, तिथिक्षय, व्यतीपात, संक्रान्ति अथवा रविवार के दिन श्रद्धालु पुरुषों को सुनाता है, वह स्वयं अपने आत्मा में ही सन्तुष्ट रहने लगता है और सिद्ध हो जाता है। यह साक्षात् भगवद्विषयक अमृतमय ज्ञान है; जो लोग भगवन्मार्ग के मर्म से अनभिज्ञ हैं- उन्हें जो कोई इसे प्रदान करता है, उस दीनवत्सल कृपालु पुरुष पर देवता अनुग्रह करते हैं। ध्रुव जी के कर्म सर्वत्र प्रसिद्ध और परम पवित्र हैं; वे अपनी बाल्यावस्था में ही माता के घर और खिलौनों का मोह छोड़कर श्रीविष्णु भगवान् की शरण में चले गये थे। कुरुनन्दन! उनका यह पवित्र चरित्र मैंने तुम्हें सुना दिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः