एकादश स्कन्ध: तृतीय अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: तृतीय अध्याय श्लोक 37-42 का हिन्दी अनुवाद
जगत् में चार प्रकार के जीव होते हैं- अंडा फोड़कर पैदा होने वाले पक्षी-साँप आदि, नाल में बँधे पैदा होने वाले पशु-मनुष्य, धरती फोड़कर निकलने वाले वृक्ष-वनस्पति और पसीने से उत्पन्न होने वाले खटमल आदि। इन सभी जीव-शरीर में प्राणशक्ति जीव के पीछे लगी रहती है। शरीरों के भिन्न-भिन्न होने पर भी प्राण एक ही रहता है। सुषुप्ति-अवस्था में जब इन्द्रियाँ निश्चेष्ट हो जाती हैं, अहंकार भी सो जाता है-लीन हो जाता है, अर्थात् लिंग शरीर नहीं रहता, उस समय यदि कूटस्थ आत्मा भी न हो तो इस बात की पीछे से स्मृति ही कैसे हो कि मैं सुख से सोया था। पीछे होने वाली यह स्मृति ही उस समय आत्मा के अस्तित्व को प्रमाणित करती है। जब भगवान कमलनाभ के चरणकमलों को प्राप्त करने की इच्छा से तीव्र भक्ति की जाती है, तब वह भक्ति ही अग्नि की भाँति गुण और कर्मों से उत्पन्न हुए चित्त के सारे मलों को जला डालती है। जब चित्त शुद्ध हो जाता है, तब आत्मतत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है-जैसे नेत्रों के निर्विकार हो जाने पर सूर्य के प्रकाश की प्रत्यक्ष अनुभूति होने लगती है। राजा निमि ने पूछा- 'योगीश्वरो! अब आप लोग हमें कर्मयोग का उपदेश कीजिये, जिसके द्वारा शुद्ध होकर मनुष्य शीघ्रातिशीघ्र परम नैष्कर्म्य अर्थात् कर्तृत्व, कर्म और कर्मफल की निवृत्ति करने वाला ज्ञान प्राप्त करता है। एक बार यही प्रश्न मैंने अपने पिता महाराज इक्ष्वाकु के सामने ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनकादि ऋषियों से पूछा था, परन्तु उन्होंने सर्वज्ञ होने पर भी मेरे प्रश्न का उत्तर न दिया। इसका क्या कारण था? कृपा करके मुझे बतलाइये।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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