श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 4 श्लोक 15-26

अष्टम स्कन्ध: चतुर्थोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: चतुर्थ अध्यायः श्लोक 15-26 का हिन्दी अनुवाद


इसी से कल्याणकामी द्विजगण दुःस्वप्न आदि की शान्ति के लिये प्रातःकाल जागते ही पवित्र होकर इसका पाठ करते हैं।

परीक्षित! गजेन्द्र की स्तुति से प्रसन्न होकर सर्वव्यापक एवं सर्वभूतस्वरूप श्रीहरि भगवान् ने सब लोगों के सामने ही उसे यह बात कही थी।

श्रीभगवान् ने कहा- जो लोग रात के पिछले पहर में उठकर इन्द्रियनिग्रहपूर्वक एकाग्र चित्त से मेरा, तेरा तथा इस सरोवर, पर्वत एवं कन्दरा, वन, बेंत, कीचक और बाँस एक झुरमुट, यहाँ के दिव्य वृक्ष तथा पर्वतशिख, मेरे, ब्रह्मा जी और शिव जी के निवासस्थान, मेरे प्यारे धाम क्षीरसागर, प्रकाशमय श्वेतद्वीप, श्रीवत्स, कौस्तुभ मणि, वनमाला, मेरी कौमोदकी गदा, सुदर्शन चक्र, पांचजन्य शंख, पक्षिराज गरुड़, मेरे सूक्ष्म कलास्वरूप शेष जी, मेरे आश्रय में रहने वाली लक्ष्मी जी, ब्रह्मा जी, देवर्षि नारद, शंकर जी तथा भक्तराज प्रह्लाद, मत्स्य, कच्छप, वराह आदि अवतारों में किये हुए मेरे अनन्त पुण्यमय चरित्र, सूर्य, चन्द्रमा, अग्नि, ॐकार, सत्य, मूलप्रकृति, गौ, ब्राह्मण, अविनाशी सनातन धर्म, सोम, कश्यप और धर्म की पत्नी दक्षकन्याएँ, गंगा, सरस्वती, अलकनन्दा, यमुना, ऐरावत हाथी, भक्तशिरोमणि ध्रुव, सात ब्रह्मर्षि और पवित्र कीर्ति (नल, युधिष्ठिर, जनक आदि) महापुरुषों का स्मरण करते हैं-वे समस्त पापों से छूट जाते हैं; क्योंकि ये सब-के-सब मेरे ही रूप हैं।

प्यारे गजेन्द्र! जो लोग ब्रह्ममुहूर्त में जगकर तुम्हारी की हुई स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, मृत्यु के समय उन्हें मैं निर्मल बुद्धि का दान करूँगा।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! भगवान् श्रीकृष्ण ने ऐसा कहकर देवताओं को आनन्दित करते हुए अपना श्रेष्ठ शंख बजाया और गरुड़ पर सवार हो गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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