श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 18 श्लोक 24-32

अष्टम स्कन्ध: अथाष्टादशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: अष्टादश अध्यायः श्लोक 24-32 का हिन्दी अनुवाद


वे कमर में मूँज की मेखला और गले में यज्ञोपवीत धारण किये हुए थे। बगल में मृगचर्म था और सिर पर जटा थी। इसी प्रकार बौने ब्राह्मण के वेष में अपनी माया से ब्रह्मचारी बने हुए भगवान् ने जब उनके यज्ञ मण्डप में प्रवेश किया, तब भृगुवंशी ब्राह्मण उन्हें देखकर अपने शिष्यों के साथ उनके तेज से प्रभावित एवं निष्प्रभ हो गये। वे सब-के-सब अग्नियों के साथ उठ खड़े हुए और उन्होंने वामन भगवान का स्वागत-सत्कार किया।

भगवान के लघु रूप के अनुरूप सारे अंग छोटे-छोटे बड़े ही मनोरम एवं दर्शनीय थे। उन्हें देखकर बलि को बड़ा आनन्द हुआ और उन्होंने वामन भगवान को एक उत्तम आसन दिया। फिर स्वागत-वाणी से उनका अभिनन्दन करके पाँव पखारे और संगरहित महापुरुषों को भी अत्यन्त मनोहर लगने वाले वामन भगवान की पूजा की। भगवान् के चरणकमलों का धोवन परममंगलमय है। उससे जीवों के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं देवाधिदेव चन्द्रमौलि भगवान शंकर ने अत्यन्त भक्तिभाव से उसे अपने सिर पर धारण किया था। आज वही चरणामृत धर्म के मर्मज्ञ राजा बलि को प्राप्त हुआ। उन्होंने बड़े प्रेम से उसे अपने मस्तक पर रखा।

बलि ने कहा- ब्राह्मणकुमार! आप भले पधारे। आपको मैं नमस्कार करता हूँ। आज्ञा कीजिये, मैं आपकी क्या सेवा करूँ?

आर्य! ऐसा जान पड़ता है कि बड़े-बड़े ब्रह्मर्षियों की तपस्या ही स्वयं मूर्तिमान होकर मेरे सामने आयी है। आज आप मेरे घर पधारे, इससे मेरे पितर तृप्त हो गये। आज मेरा वंश पवित्र हो गया। आज मेरा यह यज्ञ सफल हो गया।

ब्राह्मणकुमार! आपके पाँव पखारने से मेरे सारे पाप धुल गये और विधिपूर्वक यज्ञ करने से, अग्नि में आहुति डालने से जो फल मिलता, वह अनायास ही मिल गया। आपके इन नन्हे-नन्हे चरणों और इनके धोवन से पृथ्वी पवित्र हो गयी। ब्राह्मणकुमार! ऐसा जान पड़ता है कि आप कुछ चाहते हैं। परमपूज्य ब्रह्मचारी जी! आप जो चाहते हों- गाय, सोना, सामग्रियों से सुसज्जित घर, पवित्र अन्न, पीने की वस्तु, विवाह के लिये ब्राह्मण की कन्या, सम्पत्तियों से भरे हुए गाँव, घोड़े, हाथी, रथ-वह सब आप मुझसे माँग लीजिये। अवश्य ही वह सब मुझसे माँग लीजिये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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