श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 24 श्लोक 24-41

नवम स्कन्ध: चतुर्विंशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: चतुर्विंश अध्यायः श्लोक 24-41 का हिन्दी अनुवाद


उग्रसेन के नौ लड़के थे- कंस, सुनामा, न्यग्रोध, कंक, शंकु, सुहू, राष्ट्रपाल, सृष्टि और तुष्टिमान। उग्रसेन के पाँच कन्याएँ भी थीं- कंसा, कंसवती, कंका, शूरभू और राष्ट्रपालिका। इनका विवाह देवभाग आदि वसुदेव जी के छोटे भाइयों से हुआ था।

चित्ररथ के पुत्र विदूरथ से शूर, शूर से भजमान, भजमान से शिनि, शिनि से स्वयम्भोज और स्वयम्भोज से हृदीक हुए। हृदीक से तीन पुत्र हुए- देवबाहु, शतधन्वा और कृतवर्मा। देवमीढ के पुत्र शूर की पत्नी का नाम था मारिषा। उन्होंने उसके गर्भ से दस निष्पाप पुत्र उत्पन्न किये- वसुदेव, देवभाग, देवश्रवा, आनक, सृंजय, श्यामक, कंक, शमीक, वत्सक और वृक। ये सब-के-सब बड़े पुण्यात्मा थे। वसुदेव जी के जन्म के समय देवताओं के नगारे और नौबत स्वयं ही बजने लगे थे। अतः वे ‘आनन्ददुन्दुभि’ भी कहलाये। वे ही भगवान् श्रीकृष्ण के पिता हुए। वसुदेव आदि की पाँच बहनें भी थीं- पृथा (कुन्ती), श्रुतदेवा, श्रुतकीर्ति, श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी।

वसुदेव के पिता शूरसेन के एक मित्र थे- कुन्तिभोज। कुन्तिभोज के कोई सन्तान न थी। इसलिये शूरसेन ने उन्हें पृथा नाम की अपनी सबसे बड़ी कन्या गोद दे दी। पृथा ने दुर्वासा ऋषि को प्रसन्न करके उनसे देवताओं को बुलाने की विद्या सीख ली। एक दिन उस विद्या के प्रभाव की परीक्षा लेने के लिये पृथा ने परम पवित्र भगवान् सूर्य का आवाहन किया। उसी समय भगवान् सूर्य वहाँ आ पहुँचे। उन्हें देखकर कुन्ती का हृदय विस्मय से भर गया। उसने कहा- ‘भगवन! मुझे क्षमा कीजिये। मैंने तो परीक्षा करने के लिये ही इस विद्या का प्रयोग किया था। अब आप पधार सकते हैं’।

सूर्यदेव ने कहा- ‘देवि! मेरा दर्शन निष्फल नहीं हो सकता। इसलिय हे सुन्दरी! अब मैं तुझसे एक पुत्र उत्पन्न करना चाहता हूँ। हाँ, अवश्य ही तुम्हारी योनि दूषित न हो, इसका उपाय मैं कर दूँगा।' यह कहकर भगवान सूर्य ने गर्भ स्थापित कर दिया और इसके बाद वे स्वर्ग चले गये। उसी समय उससे एक बड़ा सुन्दर एवं तेजस्वी शिशु उत्पन्न हुआ। वह देखने में दूसरे सूर्य के समान जान पड़ता था। पृथा लोकनिन्दा से डर गयी। इसलिये उसने बड़े दुःख से उस बालक को नदी के जल में छोड़ दिया। परीक्षित! उसी पृथा का विवाह तुम्हारे परदादा पाण्डु से हुआ था, जो वास्तव में बड़े सच्चे वीर थे।

परीक्षित! पृथा की छोटी बहिन श्रुतदेवा का विवाह करुष देश के अधिपति वृद्धशर्मा से हुआ था। उसके गर्भ से दन्तवक्त्र का जन्म हुआ। यह वही दन्तवक्त्र है, जो पूर्व जन्म में सनकादि ऋषियों के शाप से हिरण्याक्ष हुआ था। कैकय देश के राजा धृष्टकेतु ने श्रुतकीर्ति से विवाह किया था। उससे सन्तर्दन आदि पाँच कैकय राजकुमार हुए। राजाधिदेवी का विवाह जयसेन से हुआ था। उसके दो पुत्र हुए- विन्द और अनुविन्द। वे दोनों ही अवन्ती के राजा हुए। चेदिराज दमघोष ने श्रुतश्रवा का पाणिग्रहण किया। उसका पुत्र था शिशुपाल, जिसका वर्णन मैं पहले (सप्तम स्कन्ध में) कर चुका हूँ। वसुदेव जी के भाइयों में से देवभाग की पत्नी कंसा के गर्भ से दो पुत्र हुए- चित्रकेतु और बृहद्बल। देवश्रवा की पत्नी कंसवती से सुवीर और इषुमान नाम के दो पुत्र हुए। आनक की पत्नी कंका के गर्भ से भी दो पुत्र हुए- सत्यजित और पुरुजित।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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