श्रीमद्भागवत माहात्म्य षष्ठ अध्याय
श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) षष्ठ अध्यायः श्लोक 35-41 का हिन्दी अनुवाद
नारद जी! नियम से सप्ताह सुनने वाले पुरुषों के नियम सुनिये। विष्णु भक्त की दीक्षा से रहित पुरुष कथा श्रवण का अधिकारी नहीं है। जो पुरुष नियम से कथा सुने, उसे ब्रह्मचर्य से रहना, भूमि पर सोना और नित्यप्रति कथा सप्ताह होने पर पत्तल में भोजन करना चाहिये। दाल, मधु, तेल, गरिष्ठ अन्न, भावदूषित पदार्थ और बासी अन्न—इनका उसे सर्वदा ही त्याग करना चाहिये। काम, क्रोध, मद, मान, मत्सर, लोभ, दम्भ, मोह और द्वेष को तो अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिये। वह वेद, वैष्णव, ब्राह्मण, गुरु, गोसेवक तथा स्त्री, राजा और महापुरुषों की निन्दा से भी बचे। नियम से कथा सुनने वाले पुरुष को रजस्वला स्त्री, अन्त्यज, म्लेच्छ, पतित, गायत्रीहीन द्विज, ब्राह्मणों से द्वेष करने वाले तथा देव को न मानने वाले पुरुषों से बात नहीं करनी चाहिये। सर्वदा सत्य, शौच, दया, मौन, सरलता, विनय और उदारता का बर्ताव करना चाहिये। धनहीन, क्षयरोगी, किसी अन्य रोग से पीड़ित, भाग्यहीन, पापी, पुत्रहीन और मुमुक्षु भी यह कथा श्रवण करे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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