श्रीमद्भागवत माहात्म्य अध्याय 6 श्लोक 35-41

श्रीमद्भागवत माहात्म्य षष्ठ अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) षष्ठ अध्यायः श्लोक 35-41 का हिन्दी अनुवाद


कथा में विघ्न न हो, इसके लिये पाँच ब्राह्मणों को और वरण करे; वे द्वादशाक्षर मन्त्र द्वारा भगवान् के नामों का जप करें। फिर ब्राह्मण, अन्य विष्णु भक्त एवं कीर्तन करने वालों को नमस्कार करके उनकी पूजा करे और उनकी आज्ञा पाकर स्वयं भी आसन पर बैठ जाय। जो पुरुष लोक, सम्पत्ति, धन, घर और पुत्रादि की चिन्ता छोड़कर शुद्धचित्त से केवल कथा में ध्यान रखता है, उसे इसके श्रवण का उत्तम फल मिलता है। बुद्धिमान वक्ता को चाहिये कि सूर्योदय से कथा आरम्भ करके साढ़े तीन पहर तक मध्यम स्वर से अच्छी तरह कथा बाँचे। दोपहर के समय दो घड़ी तक कथा बंद रखे। उस समय कथा के प्रसंग के अनुसार वैष्णवों को भगवान् के गुणों का कीर्तन करना चाहिये—व्यर्थ की बातें नहीं करनी चाहिये। कथा के समय मल-मूत्र के वेग को काबू में रखने के लिये अल्पाहार सुखकारी होता है; इसलिये श्रोता केवल एक ही समय हविष्यान्न भोजन करे। यदि शक्ति हो तो सातों दिन निराहार रहकर कथा सुने अथवा केवल घी अथवा दूध पीकर सुखपूर्वक श्रवण करे। अथवा फलाहार या एक समय ही भोजन करे। जिससे जैसा नियम सुभीते से सध सके, उसी को कथा श्रवण के लिये ग्रहण करे। मैं तो उपवासी की अपेक्षा भोजन करना अच्छा समझता हूँ, यदि वह कथा श्रवण में सहायक हो। यदि उपवास से श्रवण में बाधा पहुँचती हो तो वह किसी काम का नहीं।

नारद जी! नियम से सप्ताह सुनने वाले पुरुषों के नियम सुनिये। विष्णु भक्त की दीक्षा से रहित पुरुष कथा श्रवण का अधिकारी नहीं है। जो पुरुष नियम से कथा सुने, उसे ब्रह्मचर्य से रहना, भूमि पर सोना और नित्यप्रति कथा सप्ताह होने पर पत्तल में भोजन करना चाहिये। दाल, मधु, तेल, गरिष्ठ अन्न, भावदूषित पदार्थ और बासी अन्न—इनका उसे सर्वदा ही त्याग करना चाहिये। काम, क्रोध, मद, मान, मत्सर, लोभ, दम्भ, मोह और द्वेष को तो अपने पास भी नहीं फटकने देना चाहिये। वह वेद, वैष्णव, ब्राह्मण, गुरु, गोसेवक तथा स्त्री, राजा और महापुरुषों की निन्दा से भी बचे। नियम से कथा सुनने वाले पुरुष को रजस्वला स्त्री, अन्त्यज, म्लेच्छ, पतित, गायत्रीहीन द्विज, ब्राह्मणों से द्वेष करने वाले तथा देव को न मानने वाले पुरुषों से बात नहीं करनी चाहिये। सर्वदा सत्य, शौच, दया, मौन, सरलता, विनय और उदारता का बर्ताव करना चाहिये। धनहीन, क्षयरोगी, किसी अन्य रोग से पीड़ित, भाग्यहीन, पापी, पुत्रहीन और मुमुक्षु भी यह कथा श्रवण करे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः