श्रीमद्भागवत माहात्म्य तृतीय अध्याय
श्रीमद्भागवत माहात्म्य: तृतीय अध्यायः श्लोक 61-72 का हिन्दी अनुवाद
सूत जी कहते हैं- उद्धव जी के इस प्रकार कहने पर राजा परीक्षित ने उनकी परिक्रमा करके उन्हें प्रणाम किया और दिग्विजय के लिये चले गये। इधर वज्र ने भी अपने पुत्र प्रतिबाहु को अपनी राजधानी मथुरा का राजा बना दिया और माताओं को साथ ले उसी स्थान पर, जहाँ उद्धव जी प्रकट हुए थे, जाकर श्रीमद्भागवत सुनने की इच्छा से रहने लगे। तदनन्तर उद्धव जी ने वृन्दावन में गोवर्धन पर्वत के निकट एक महीने तक श्रीमद्भागवत कथा के रस की धारा बहायी। उस रस का आस्वादन करते समय प्रेमी श्रोताओं की दृष्टि में सब ओर भगवान की सच्चिदानन्दमयी लीला प्रकाशित हो गयी और सर्वत्र श्रीकृष्णचन्द्र का साक्षात्कार होने लगा। उस समय सभी श्रोताओं ने अपने को भगवान के स्वरूप में स्थित देखा। वज्रनाभ ने श्रीकृष्ण के दाहिने चरणकमल में अपने को स्थित देखा और श्रीकृष्ण के विरह शोक से मुक्त होकर उस स्थान पर अत्यन्त सुशोभित होने लगे। वज्रनाभ की वे रोहिणी आदि माताएँ भी रास की रजनी में प्रकाशित होने वाले श्रीकृष्णरूपी चन्द्रमा के विग्रह में अपने को कला और प्रभा के रूप में स्थित देख बहुत ही विस्मित हुई तथा अपने प्राण प्यारे की विरह-वेदना से छुटकारा पाकर उनके परमधाम में प्रविष्ट हो गयीं। इनके अतिरिक्त भी जो श्रोतागण वहाँ उपस्थित थे, वे भी भगवान की नित्य अन्तरंग लीला में सम्मिलित होकर इस स्थूल व्यावहारिक जगत् से तत्काल अन्तर्धान हो गये। वे सभी सदा ही गोवर्धन-पर्वत के कुंज और झाड़ियों में, वृन्दावन-काम्यवन आदि वनों में तथा वहाँ की दिव्य गौओं के बीच में श्रीकृष्ण के साथ विचरते हुए अनन्त आनन्द का अनुभव करते रहते हैं। जो लोग श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न हैं, उन भावुक भक्तों को उनके दर्शन भी होते हैं। सूत जी कहते हैं- जो लोग इस भगवत्प्राप्ति की कथा को सुनेंगे और कहेंगे, उन्हें भगवान मिल जायेंगे और उनके दुःखों का सदा के लिये अन्त हो जायेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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