श्रीमद्भागवत महापुराण सप्तम स्कन्ध अध्याय 8 श्लोक 45-56

सप्तम स्कन्ध: अथाष्टमोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: सप्तम स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 45-56 का हिन्दी अनुवाद


सिद्धों ने कहा- 'नृसिंह देव! इस दुष्ट ने अपने योग और तपस्या के बल से हमारी योगसिद्धि गति छीन ली थी। अपने नखों से आपने उस घमंडी को फाड़ डाला है। हम आपके चरणों में विनीतभाव से नमस्कार करते हैं।'

विद्याधरों ने कहा- 'यह मूर्ख हिरण्यकशिपु अपने बल और वीरता के घमंड में चूर था। यहाँ तक कि हम लोगों ने विविध धारणाओं से जो विद्या प्राप्त की थी, उसे इसने व्यर्थ कर दिया था। आपने युद्ध में यज्ञपशु की तरह इसको नष्ट कर दिया। अपनी लीला से नृसिंह बने हुए आपको हम नित्य-निरन्तर प्रणाम करते हैं।'

नागों ने कहा- 'इस पापी ने हमारी मणियों और हमारी श्रेष्ठ और सुन्दर स्त्रियों को छीन लिया था। आज उसकी छाती फाड़कर आपने हमारी पत्नियों को बड़ा आनन्द दिया है। प्रभो! हम आपको नमस्कार करते हैं।'

मनुओं ने कहा- 'देवाधिदेव! हम आपके आज्ञाकारी मनु हैं। इस दैत्य ने हम लोगों की धर्म मर्यादा भंग कर दी थी। आपने उस दुष्ट को मारकर बड़ा उपकार किया है। प्रभो! हम आपके सेवक हैं। आज्ञा कीजिये, हम आपकी क्या सेवा करें?'

प्रजापतियों ने कहा- 'परमेश्वर! आपने हमें प्रजापति बनाया था। परन्तु इसके रोक देने से हम प्रजा की सृष्टि नहीं कर पाते थे। आपने इसकी छाती फाड़ डाली और यह जमीन पर सर्वदा के लिये सो गया। सत्त्वमय मूर्ति धारण करने वाले प्रभो! आपक यह अवतार संसार के कल्याण के लिये है।'

गन्धर्वों ने कहा- 'प्रभो! हम आपके नाचने वाले, अभिनय करने वाले और संगीत सुनाने वाले सेवक हैं। इस दैत्य ने अपने बल, वीर्य और पराक्रम से हमें अपना गुलाम बना रखा था। उसे आपने इस दशा में पहुँचा दिया। सच है, कुमार्ग से चलने वाले का भी क्या कभी कल्याण हो सकता है?'

चारणों ने कहा- 'प्रभो! आपने सज्जनों के हृदय को पीड़ा पहुँचाने वाले इस दुष्ट को समाप्त कर दिया। इसलिये हम आपके उन चरणकमलों की शरण में हैं, जिनके प्राप्त होते ही जन्म-मृत्युरूप संसारचक्र से छुटकारा मिल जाता है।'

यक्षों ने कहा- 'भगवन्! अपने श्रेष्ठ कर्मों के कारण हम लोग आपके सेवकों में प्रधान गिने जाते थे। परन्तु हिरण्यकशिपु ने हमें अपनी पालकी ढोने वाला कहार बना लिया। प्रकृति के नियामक परमात्मा! इसके कारण होने वाले अपने जिनजनों के कष्ट जानकर ही आपने इसे मार डाला है।'

किम्पुरुषों ने कहा- 'हम लोग अत्यन्त तुच्छ किम्पुरुष हैं और आप सर्वशक्तिमान् महापुरुष हैं। जब सत्पुरुषों ने इसका तिरस्कार किया- इसे धिक्कारा, तभी आज आपने इस कुपुरुष- असुराधम को नष्ट कर दिया।'

वैतालिकों ने कहा- 'भगवन्! बड़ी-बड़ी सभाओं और ज्ञानयज्ञों में आपके निर्मल यश का गान करके हम बड़ी प्रतिष्ठा-पूजा प्राप्त करते थे। इस दुष्ट ने हमारी वह आजीविका ही नष्ट कर दी थी। बड़े सौभाग्य की बात है कि महारोग के समान इस दुष्ट को आपन जड़मूल से उखाड़ दिया।'

किन्नरों ने कहा- 'हम किन्नरगण आपके सेवक हैं। यह दैत्य हमसे बेगार में ही काम लेता था। भगवन्! आपने कृपा करके आज इस पापी को नष्ट कर दिया। प्रभो! आप इसी प्रकार हमारा अभ्युदय करते रहें।'

भगवान् के पार्षदों ने कहा- 'शरणागतवत्सल! सम्पूर्ण लोकों को शान्ति प्रदान करने वाला आपका यह अलौकिक नृसिंह रूप हमने आज ही देखा है। भगवन्! यह दैत्य आपका वही आज्ञाकारी सेवक था, जिसे सनकादि ने शाप दे दिया था। हम समझते हैं, आपने कृपा करके इसके उद्धार के लिये ही इसका वध किया है।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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