षष्ठ स्कन्ध: नवम अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: षष्ठ स्कन्ध: नवम अध्यायः श्लोक 51-55 का हिन्दी अनुवाद
देवराज! मेरी शक्ति से युक्त होकर तुम उसी शस्त्र के द्वारा वृत्रासुर का सिर काट लोगे। देवताओं! वृत्रासुर के मर जाने पर तुम लोगों को फिर से तेज, अस्त्र-शस्त्र और सम्पत्तियाँ प्राप्त हो जायेंगी। तुम्हारा कल्याण अवश्यम्भावी है; क्योंकि मेरे शरणागतों को कोई सता नहीं सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह कथा इस प्रकार है- दधीचि ऋषि को प्रवर्ग्य (यज्ञकर्म विशेष) और ब्रह्मविद्या का उत्तम ज्ञान है-यह जानकर एक बार उनके पास अश्विनीकुमार आये और उनसे ब्रह्मविद्या का उपदेश करने के लिये प्रार्थना की। दधीचि मुनि ने कहा- ‘इस समय मैं एक कार्य में लगा हुआ हूँ, इसलिये फिर किसी समय आना।’ इस पर अश्विनीकुमार चले गये। उनके जाते ही इन्द्र ने आकर कहा- ‘मुने! अश्विनीकुमार वैद्य हैं, उन्हें तुम ब्रह्मविद्या का उपदेश मत करना। यदि तुम मेरी बात न मानकर उन्हें उपदेश करोगे तो मैं तुम्हारा सिर काट डालूँगा।’ जब ऐसा कहकर इन्द्र चले गये, तब अश्विनीकुमारों ने आकर फिर वही प्रार्थना की। मुनि ने इन्द्र का सब वृतान्त सुनाया। इस पर अश्विनीकुमारों ने कहा- ‘हम पहले ही आपका यह सिर काटकर घोड़े का सिर जोड़ देंगे, उससे आप हमें उपदेश करें और जब इन्द्र आपका घोड़े का सिर काट देंगे, तब हम फिर असली सिर जोड़ देंगे।’ मुनि ने मिथ्या-भाषण के भय से उनका कथन स्वीकार कर लिया। इस प्रकार अश्वमुख से उपदेश की जाने के कारण ब्रह्मविद्या का नाम ‘अश्वशिरा’ पड़ा।
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