श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 13 श्लोक 11-27

नवम स्कन्ध: त्रयोदशोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: त्रयोदश अध्यायः श्लोक 11-27 का हिन्दी अनुवाद


देवताओं ने कहा- ‘मुनियों! राजा निमि बिना शरीर के ही प्राणियों के नेत्रों में अपनी इच्छा के अनुसार निवास करें। वे वहाँ रहकर सूक्ष्म शरीर से भगवान का चिन्तन करते रहें। पलक उठने और गिरने पर उनके अस्तित्व का पता चलता रहेगा। इसके बाद महर्षियों ने यह सोचकर कि ‘राजा के न रहने पर लोगों में अराजकता फैल जायेगी’ निमि के शरीर का मन्थन किया। उस मन्थन से एक कुमार उत्पन्न हुआ। जन्म लेने के कारण उसका नाम हुआ जनक। विदेह से उत्पन्न होने के कारण ‘विदेह’ और मन्थन से उत्पन्न होने के कारण उसी बालक का नाम ‘मिथिल’ हुआ। उसी ने मिथिलापुरी बसायी।

परीक्षित! जनक का उदावसु, उसका नन्दिवर्धन, नन्दिवर्धन का सुकेतु, उसका देवरात, देवरात का बृहद्रथ, बृहद्रथ का महावीर्य, महावीर्य का सुधृति, सुधृति का धृष्टकेतु, धृष्टकेतु का हर्यश्व और उसका मरु नामक पुत्र हुआ। मरु से प्रतीपक, प्रतीपक से कृतिरथ, कृतिरथ से देवमीढ, देवमीढ से विश्रुत और विश्रुत से महाधृति का जन्म हुआ। महाधृति का कृतिराज, कृतिराज का महारोमा, महारोमा का स्वर्णरोमा और स्वर्णरोमा का पुत्र हुआ ह्रस्वरोमा। इसी ह्रस्वरोमा के पुत्र महाराज सीरध्वज थे। वे जब यज्ञ के लिये धरती जोत रहे थे, तब उनके सीर (हल) के अग्रभाव (फाल) से सीता जी की उत्पत्ति हुई। इसी से उनका नाम ‘सीरध्वज’ पड़ा।

सीरध्वज के कुशध्वज, कुशध्वज के धर्मध्वज और धर्मध्वज के दो पुत्र हुए-कृतध्वज और मितध्वज। कृतध्वज के केशिध्वज और मितध्वज के खाण्डिक्य हुए। परीक्षित! केशिध्व्ज आत्मविद्या में बड़ा प्रवीण था। खाण्डिक्य था कर्मकाण्ड का मर्मज्ञ। वह केशिध्वज से भयभीत होकर भाग गया। केशिध्वज का पुत्र भानुमान और भानुमान का शतद्युम्न था। शतद्युम्न से शुचि, शुचि से सनद्वाज, सनद्वाज से ऊर्ध्वकेतु, ऊर्ध्वकेतु से अज, अज से पुरुजित, पुरुजित् से अरिष्टनेमि, अरिष्टनेमि से श्रुतायु, श्रुतायु से सुपार्श्वक, सुपार्श्वक से चित्ररथ और चित्ररथ से मिथिलापति क्षेमधि का जन्म हुआ। क्षेमधि से समरथ, समरथ से सत्यरथ, सत्यरथ से उपगुरु और उपगुरु से उपगुप्त नामक पुत्र हुआ। यह अग्नि का अंश था। उपगुप्त का वस्वनन्त, वस्वनन्त का युयुध, युयुध का सुभाषण, सुभाषण का श्रुत, श्रुत का जय, जय का विजय और विजय का ऋत नामक पुत्र हुआ। ऋत का शुनक, शुनक का वीतहव्य, वीतहव्य का धृति, धृति का बहुलाश्व, बहुलाश्व का कृति और कृति का पुत्र हुआ महावशी।

परीक्षित! ये मिथिल के वंश में उत्पन्न सभी नरपति ‘मैथिल’ कहलाते हैं। ये सब-के-सब आत्मज्ञान से सम्पन्न एवं गृहस्थाश्रम में रहते हुए भी सुख-दुःख आदि द्वन्द्वों से मुक्त थे। क्यों न हो, याज्ञवल्क्य आदि बड़े-बड़े योगेश्वरों की इन पर महान कृपा जो थी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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