श्रीमद्भागवत महापुराण नवम स्कन्ध अध्याय 10 श्लोक 10-17

नवम स्कन्ध: दशमोऽध्याय: अध्याय

Prev.png

श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: दशम अध्यायः श्लोक 10-17 का हिन्दी अनुवाद


परीक्षित! जब रावण ने सीता जी के रूप, गुण, सौन्दर्य आदि की बात सुनी तो उसका हृदय काम वासना से आतुर हो गया। उसने अद्भुत हरिन के वेष में मरीच को उनकी पर्णकुटी के पास भेजा। वह धीरे-धीरे भगवान को वहाँ से दूर ले गया। अन्त में भगवान ने अपने बाण से उसे बात-की-बात में वैसे ही मार डाला, जैसे दक्ष प्रजापति को वीरभद्र ने मारा था। जब भगवान श्रीराम जंगल में दूर निकल गये, तब (लक्ष्मण की अनुपस्थिति में) नीच राक्षस रावण ने भेड़िये के समान विदेहनन्दिनी सुकुमारी श्रीसीता जी को हर लिया। तदनन्तर वे अपनी प्राणप्रिया सीता जी से बिछुड़कर अपने भाई लक्ष्मण के साथ वन-वन में दीन की भाँति घूमने लगे और इस प्रकार उन्होंने यह शिक्षा दी कि ‘जो स्त्रियों में आसक्ति रखते हैं, उनकी यही गति होती है’।

इसके बाद भगवान ने उस जटायु का दाह-संस्कार किया, जिसके सारे कर्म बन्धन भगवत्सेवारूप कर्म से पहले ही भस्म हो चुके थे। फिर भगवान ने कबन्ध का संहार किया और इसके अनन्तर सुग्रीव आदि वानरों से मित्रता करके बालि का वध किया, तदनन्तर वानरों के द्वारा अपनी प्राणप्रिया का पता लगवाया। ब्रह्मा और शंकर जिनके चरणों की वन्दना करते हैं, वे भगवान श्रीराम मनुष्य की-सी लीला करते हुए बंदरों की सेना के साथ समुद्र तट पर पहुँचे। (वहाँ उपवास और प्रार्थना से जब समुद्र पर कोई प्रभाव न पड़ा, तब) भगवान ने क्रोध की लीला करते हुए अपनी उग्र एवं टेढ़ी नजर समुद्र पर डाली। उसी समय समुद्र के बड़े-बड़े मगर और मच्छ खलबला उठे। डर जाने के कारण समुद्र की गर्जना शान्त हो गयी। तब समुद्र शरीरधारी बनकर और अपने सिर पर बहुत-सी भेंटे लेकर भगवान के चरणकमलों की शरण में आया और इस प्रकार कहने लगा- ‘अनन्त! हम मूर्ख हैं; इसलिये आपके वास्तविक स्वरूप को नहीं जानते। जानें भी कैसे? आप समस्त जगत् के एकमात्र स्वामी, आदिकारण एवं जगत् के समस्त परिवर्तनों में एकरस रहने वाले हैं। आप समस्त गुणों के स्वामी हैं। इसलिये जब आप सत्त्वगुण को स्वीकार कर लेते हैं, तब देवताओं की, रजोगुण को स्वीकार कर लेते हैं तब प्रजापतियों की और तमोगुण को स्वीकार कर लेते हैं, तब आपके क्रोध से रुद्रगण की उत्पत्ति होती है।

वीरशिरोमणे! आप अपनी इच्छा के अनुसार मुझे पार कर जाइये और त्रिलोकी को रुलाने वाले विश्रवा के कुपूत रावण को मारकर अपनी पत्नी को फिर से प्राप्त कीजिये। परन्तु आपसे मेरी एक प्रार्थना है। आप यहाँ मुझ पर एक पुल बाँध दीजिये। इससे आपके यश का विस्तार होगा और आगे चलकर जब बड़े-बड़े नरपति दिग्विजय करते हुए यहाँ आयेंगे, तब वे आपके यश का गान करेंगे’।

भगवान श्रीराम ने अनेकानेक पर्वतों के शिखरों से समुद्र पर पुल बाँधा। जब बड़े-बड़े बन्दर अपने हाथों से पर्वत उठा-उठाकर लाते थे, तब उनके वृक्ष और बड़ी-बड़ी चट्टानें थर-थर काँपने लगती थीं। इसके बाद विभीषण की सलाह से सुग्रीव, नील, हनुमान आदि प्रमुख वीरों और वानरी सेना के साथ लंका में प्रवेश किया। वह तो श्रीहनुमान जी के द्वारा पहले ही जलायी जा चुकी थी। उस समय वानर की सेना ने लंका के सैर करने और खेलने के स्थान, अन्न के गोदाम, खजाने, दरवाजे, फाटक, सभा भवन, छज्जे और पक्षियों के रहने के स्थान तक को घेर लिया। उन्होंने वहाँ की वेदी, ध्वजाएँ, सोने के कलश और चौराहे तोड़-फोड़ डाले। उस समय लंका ऐसी मालूम पड़ रही थी, जैसे झुंड-के-झुंड हाथियों ने किसी नदी को मथ डाल हो।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः