दशम स्कन्ध: पंचषष्टितम अध्याय (पूर्वार्ध)
श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: पंचषष्टितम अध्याय श्लोक 25-32 का हिन्दी अनुवाद
अब यमुना जी कि प्रार्थना स्वीकार करके भगवान बलराम जी ने उन्हें क्षमा कर दिया और फिर जैसे गजराज हथिनियों के साथ क्रीडा करता है, वैसे ही वे गोपियों के साथ जलक्रीड़ा करने लगे। जब वे यथेष्ट जल-विहार करके यमुना जी से बाहर निकले, तब लक्ष्मी जी ने उन्हें नीलाम्बर, बहुमूल्य आभूषण और सोने का सुन्दर हार दिया। बलराम जी ने नील वस्त्र पहन लिये और सोने की माला गले में डाल ली। वे अंगराग लगाकर, सुन्दर भूषणों से विभूषित होकर इस प्रकार शोभायमान हुए मानो इन्द्र का श्वेतवर्ण ऐरावत हाथी हो। परीक्षित! यमुना जी अब भी बलराम जी के खींचे हुए मार्ग से बहती हैं और वे ऐसी जान पड़ती हैं, मानो अनन्तशक्ति भगवान बलराम जी का यश-गान कर रही हों। बलराम जी का चित्त व्रजवासिनी गोपियों के माधुर्य से इस प्रकार मुग्ध हो गया कि उन्हें समय का कुछ ध्यान न रहा, बहुत-सी रात्रियाँ एक रात के समान व्यतीत हो गयीं। इस प्रकार बलराम जी व्रज में विहार करते रहे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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