तृतीय स्कन्ध: नवम अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: नवम अध्यायः श्लोक 34-44 का हिन्दी अनुवाद
प्यारे ब्रह्मा जी! तुमने जो मेरी कथाओं के वैभव से युक्त मेरी स्तुति की है और तपस्या में जो तुम्हारी निष्ठा है, वह भी मेरी ही कृपा का फल है। लोक रचना की इच्छा से तुमने सगुण प्रतीत होने पर भी जो निर्गुण रूप से मेरा वर्णन करते हुए स्तुति की है, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ; तुम्हारा कल्याण हो। मैं समस्त कामनाओं और मनोरथों को पूर्ण करने में समर्थ हूँ। जो पुरुष नित्य प्रति इस स्तोत्र द्वारा स्तुति करके मेरा भजन करेगा, उस पर मैं शीघ्र ही प्रसन्न हो जाऊँगा। तत्त्ववेत्ताओं का मत है कि पूर्त, तप, यज्ञ, दान, योग और समाधि आदि साधनों से प्राप्त होने वाला जो परम कल्याणमय फल है, वह मेरी प्रसन्नता ही है। विधाता! मैं आत्माओं का भी आत्मा और स्त्री-पुत्रादि प्रियों का भी प्रिय हूँ। देहादि भी मेरे ही लिये प्रिय हैं। अतः मुझसे ही प्रेम करना चाहिये। ब्रह्मा जी! त्रिलोकी को तथा जो प्रजा इस समय मुझमें लीन है, उसे तुम पूर्वकल्प के समान मुझसे उत्पन्न हुए अपने सर्वदेवमय स्वरूप से स्वयं ही रचो। श्रीमैत्रेय जी कहते हैं- प्रकृति और पुरुष के स्वामी कमलनाभ भगवान् सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को इस प्रकार जगत् की अभिव्यक्ति करवाकर अपने उस नारायणरूप से अदृश्य हो गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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