तृतीय स्कन्ध: सप्तम अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: सप्तम अध्यायः श्लोक 17-33 का हिन्दी अनुवाद
भगवन्! आपने कहा कि सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान् ने क्रमशः महदादि तत्त्व और उनके विकारों को रचकर फिर उनके अंशों से विराट् को उत्पन्न किया और इसके पश्चात् वे स्वयं उसमें प्रविष्ट हो गये। उन विराट् के हजारों पैर, जाँघें और बाँहें हैं; उन्हीं को वेद आदि पुरुष कहते हैं; उन्हीं में ये सब लोक विस्तृत रूप से स्थित हैं। उन्हीं में इन्द्रिय, विषय और इन्द्रियाभिमानी देवताओं के सहित दस प्रकार के प्राणों का-जो इन्द्रियबल, मनोबल और शारीरिक बलरूप से तीन प्रकार के हैं-आपने वर्णन किया है और उन्हीं से ब्राह्मणादि वर्ण भी उत्पन्न हुए हैं। अब आप मुझे उनकी ब्रह्मादि विभूतियों का वर्णन सुनाइये-जिनसे पुत्र, पौत्र, नाती और कुटुम्बियों के सहित तरह-तरह की प्रजा उत्पन्न हुई और उससे यह सारा ब्रह्माण्ड भर गया। वह विराट् ब्रह्मादि प्रजापतियों का भी प्रभु है। उसने किन-किन प्रजापतियों को उत्पन्न किया तथा सर्ग, अनुसर्ग और मन्वन्तरों के अधिपति मनुओं की भी किस क्रम से रचना की? मैत्रेय जी! उन मनुओं के वंश और वंशधर राजाओं के चरित्रों का, पृथ्वी के ऊपर और नीचे के लोकों तथा भूर्लोक के विस्तार और स्थिति का भी वर्णन कीजिये तथा यह भी बतलाइये कि तिर्यक्, मनुष्य, देवता, सरीसृप (सर्पादि रेंगने वाले जन्तु) और पक्षी तथा जरायुज, स्वेदज, अण्डज और उद्भिज्ज- ये चार प्रकार के प्राणी किस प्रकार उत्पन्न हुए। श्रीहरि ने सृष्टि करते समय जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार के लिये अपने गुणावतार ब्रह्मा, विष्णु और महादेवरूप से जो कल्याणकारी लीलाएँ कीं, उनका भी वर्णन कीजिये। वेष, आचरण और स्वभाव के अनुसार वर्णाश्रम का विभाग, ऋषियों के जन्म-कर्मादि, वेदों का विभाग, यज्ञों का विस्तार, योग का मार्ग, ज्ञानमार्ग और उसका साधन सांख्यमार्ग तथा भगवान् के कहे हुए नारद पांचरात्र आदि तन्त्रशास्त्र, विभिन्न पाखण्ड मार्गों के प्रचार से होने वाली विषमता, नीच वर्ण के पुरुष से उच्च वर्ण की स्त्री में होने वाली सन्तानों के प्रकार तथा भिन्न-भिन्न गुण और कर्मों के कारण जीव की जैसी और जितनी गतियाँ होती हैं, वे सब हैं सुनाइये। ब्रह्मन्! धर्म, अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति के परस्पर अविरोधी साधनों का, वाणिज्य, दण्डनीति और शास्त्र श्रवण की विधियों का, श्राद्ध की विधि का, पितृगुणों की सृष्टि का तथा कालचक्र में ग्रह, नक्षत्र और तारागण की स्थिति का भी अलग-अलग वर्णन कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज