श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्ध अध्याय 26 श्लोक 64-72

तृतीय स्कन्ध: षड्-विंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: तृतीय स्कन्ध: षड्-विंश अध्यायः श्लोक 64-72 का हिन्दी अनुवाद


सूर्य ने चक्षु के सहित नेत्रों में प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा। दिशाओं ने श्रवणेन्द्रिय के सहित कानों में प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा।

ओषधियों ने रोमों के सहित त्वचा में प्रवेश किया, फिर भी विराट् पुरुष न उठा। जल ने वीर्य के साथ लिंग में प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न था। मृत्यु ने अपान के साथ गुदा में प्रवेश किया, फिर भी विराट् पुरुष न उठा। इन्द्र ने बल के साथ हाथों में प्रवेश किया, परन्तु इससे भी विराट् पुरुष न उठा। विष्णु ने गति के सहित चरणों में प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा। नदियों ने रुधिर के सहित नाड़ियों में प्रवेश किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा।

समुद्र ने क्षुधा-पिपासा के सहित उदर में प्रवेश किया, फिर भी विराट् पुरुष न उठा। चन्द्रमा ने मन के सहित हृदय में प्रवेश किया, तो भी विराट् पुरुष न उठा। ब्रह्मा ने बुद्धि के सहित हृदय किया, तब भी विराट् पुरुष न उठा। रुद्र ने अहंकार के सहित उसी हृदय में प्रवेश किया, तो भी विराट् परुष न उठा।

किन्तु जब चित्त के अधिष्ठाता क्षेत्रज्ञ ने चित्त के सहित हृदय में प्रवेश किया, तो विराट् पुरुष उसी समय जल से उठकर खड़ा हो गया। जिस प्रकार लोक में प्राण, इन्द्रिय, मन और बुद्धि आदि चित्त के अधिष्ठाता क्षेत्रज्ञ की सहायता के बिना सोये हुए प्राणी को अपने बल से नहीं उठा सकते, उसी प्रकार विराट् पुरुष को भी वे क्षेत्रज्ञ परमात्मा के बिना नहीं उठे सके। अतः भक्ति, वैराग्य और चित्त की एकाग्रता से प्रकट हुए ज्ञान के द्वारा उस अन्तरात्मस्वरूप क्षेत्रज्ञ को इस शरीर में स्थित जानकर उसका चिन्तन करना चाहिये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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