चतुर्थ स्कन्ध: पंचदश अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: चतुर्थ स्कन्ध: पंचदश अध्यायः श्लोक 15-26 का हिन्दी अनुवाद
पृथु ने कहा- सौम्य सूत, मागध और वन्दीजन! अभी तो लोक में मेरा कोई भी गुण प्रकट नहीं हुआ। फिर तुम किन गुणों को लेकर मेरी स्तुति करोगे? मेरे विषय में तुम्हारी वाणी व्यर्थ नहीं होनी चाहिये। इसलिये मुझसे भिन्न किसी और की स्तुति करो। मृदुभाषियों! कालान्तर में जब मेरे अप्रकट गुण प्रकट हो जायें, तब भरपेट अपनी मधुर वाणी से मेरी स्तुति कर लेना। देखो, शिष्टपुरुष पवित्रकीर्ति श्रीहरि के गुणानुवाद के रहते हुए तुच्छ मनुष्यों की स्तुति नहीं किया करते। महान् गुणों को धारण करने में समर्थ होने पर भी ऐसा कौन बुद्धिमान् पुरुष है, जो उसके न रहने पर भी केवल सम्भावनामात्र से स्तुति करने वालों द्वारा अपनी स्तुति करायेगा? यदि यह विद्याभ्यास करता तो इसमें अमुक-अमुक गुण हो जाते-इस प्रकार की स्तुति से तो मनुष्य की वंचना की जाती है। वह मन्दमति यह नहीं समझता कि इस प्रकार तो लोग उसका उपहास ही कर रहे हैं। जिस प्रकार लज्जाशील उदारपुरुष अपने किसी निन्दित पराक्रम की चर्चा होनी बुरी समझते हैं; उसी प्रकार लोकविख्यात समर्थ पुरुष अपनी स्तुति को भी निन्दित मानते हैं। सूतगण! अभी हम अपने श्रेष्ठ कर्मों के द्वारा लोक में अप्रसिद्ध ही हैं; हमने अब तक कोई भी ऐसा काम नहीं किया है, जिसकी प्रशंसा की जा सके। तब तुम लोगों से बच्चों के समान अपनी कीर्ति का किस प्रकार गान करावें? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज