श्रीमद्भागवत महापुराण एकादश स्कन्ध अध्याय 21 श्लोक 41-43

एकादश स्कन्ध: एकविंश अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: एकादश स्कन्ध: एकविंश अध्याय श्लोक 41-43 का हिन्दी अनुवाद


(चार-चार अधिक वर्णों वाले छन्दों में से कुछ ये हैं-) गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, अतिच्छन्द, अत्यष्टि, अतिजगती और विराट्। वह वेदवाणी कर्मकाण्ड में क्या विधान करती है, उपासना काण्ड में किन प्रतीतियों का अनुवाद करके उनमें अनेकों प्रकार के विकल्प करती है-इन बातों को इस सम्बन्ध में श्रुति के सहस्य को मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं जानता।

मैं तुम्हें स्पष्ट बतला देता हूँ, सभी श्रुतियाँ कर्मकाण्ड में मेरा ही विधान करती हैं, उपासना काण्ड में उपास्य देवताओं के रूप में वे मेरा ही वर्णन करती हैं और ज्ञानकाण्ड में आकाशादि रूप से मुझमें ही अन्य वस्तुओं का आरोप करके उनका निषेध कर देती है।

सम्पूर्ण श्रुतियों का बस, इतना ही तात्पर्य है कि वे मेरा आश्रय लेकर मुझमें भेद का आरोप करती हैं, मायामात्र कहकर उसका अनुवाद करती हैं और अन्त में सबका निषेध करके मुझमें ही शान्त हो जाती हैं और केवल अधिष्ठान रूप से मैं ही शेष रह जाता हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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