श्रीमद्भागवत महापुराण अष्टम स्कन्ध अध्याय 2 श्लोक 29-33

अष्टम स्कन्ध: द्वितीयोऽध्याय: अध्याय

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श्रीमद्भागवत महापुराण: अष्टम स्कन्ध: द्वितीय अध्यायः श्लोक 29-33 का हिन्दी अनुवाद


गजेन्द्र और ग्राह अपनी-अपनी पूरी शक्ति लगाकर भिड़े हुए थे। कभी गजेन्द्र ग्राह को बाहर खींच लाता तो कभी ग्राह गजेन्द्र को भीतर खींच ले जाता।

परीक्षित! इस प्रकार उनको लड़ते-लड़ते एक हजार वर्ष बीत गये और दोनों ही जीते रहे। यह घटना देखकर देवता भी आश्चर्यचकित हो गये।

अन्त में बहुत दिनों तक बार-बार जल में खींचे जाने से गजेन्द्र का शरीर शिथिल पड़ गया। न तो उसके शरीर में बल रह गया और न मन में उत्साह। शक्ति भी क्षीण हो गयी। इधर ग्राह तो जलचर ही ठहरा। इसलिये उसकी शक्ति क्षीण होने के स्थान पर बढ़ गयी, वह बड़े उत्साह से और भी बल लगाकर गजेन्द्र को खींचने लगा।

इस प्रकार देहाभिमानी गजेन्द्र अकस्मात् प्राण संकट में पड़ गया और अपने को छुड़ाने में सर्वथा असमर्थ हो गया। बहुत देर तक उसने अपने छुटकारे के उपाय पर विचार किया, अन्त में वह इस निश्चय पहुँचा- ‘यह ग्राह विधाता की फाँसी ही है। इसमें फँसकर मैं आतुर हो रहा हूँ। जब मुझे मेरे बराबर के हाथी भी इस विपत्ति से न उबार सके, तब ये बेचारी हथिनियाँ तो छुड़ा ही कैसे सकती हैं। इसलिये अब मैं सम्पूर्ण विश्व के एकमात्र आश्रय भगवान् की ही शरण लेता हूँ।

काल बड़ा बली है। यह साँप के समान बड़े प्रचण्ड वेग से सबको निगल जाने के लिये दौड़ता ही रहता है। इससे भयभीत होकर जो कोई भगवान् की शरण में चला जाता है, उसे वे प्रभु अवश्य-अवश्य बचा लेते हैं। उनके भय से भीत होकर मृत्यु भी अपना कम ठीक-ठीक पूरा करता है। वही प्रभु सबके आश्रय हैं। मैं उन्हीं की शरण ग्रहण करता हूँ’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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