सप्तम स्कन्ध: षष्ठोऽध्याय: अध्याय
श्रीमद्भागवत महापुराण: सप्तम स्कन्ध: षष्ठ अध्यायः श्लोक 25-30 का हिन्दी अनुवाद
आत्मविद्या, कर्मकाण्ड, न्याय (तर्कशास्त्र), दण्डनीति और जीविका के विविध साधन- ये सभी वेदों के प्रतिपाद्य विषय हैं; परन्तु यदि ये अपने परम हितैषी, परम पुरुष भगवान् श्रीहरि को आत्मसमर्पण करने में सहायक हैं, तभी मैं इन्हें सत्य (सार्थक) मानता हूँ। अन्यथा ये सब-के-सब निरर्थक हैं। यह निर्मल ज्ञान जो मैंने तुम लोगों को बतलाया है, बड़ा ही दुर्लभ है। इसे पहले नर-नारायण ने नारद जी को उपदेश किया था और यह ज्ञान उन सब लोगों को प्राप्त हो सकता है, जिन्होंने भगवान् के अनन्य प्रेमी एवं अकिंचन भक्तों के चरणकमलों की धूलि से अपने शरीर को नहला लिया है। यह विज्ञान सहित ज्ञान विशुद्ध भागवत धर्म है। इसे मैंने भगवान् का दर्शन कराने वाले देवर्षि नारद जी के मुँह से ही पहले-पहल सुना था। प्रह्लाद जी के सहपाठियों ने पूछा- प्रह्लाद जी! इन दोनों गुरुपुत्रों को छोड़कर और किसी गुरु को तो न तुम जानते हो और न हम। ये ही हम सब बालकों के शासक हैं। तुम एक तो अभी छोटी अवस्था के हो और दूसरे जन्म से ही महल में अपनी माँ के पास रहे हो। तुम्हारा महात्मा नारद जी से मिलना कुछ असंगत-सा जान पड़ता है। प्रियवर! यदि इस विषय में विश्वास दिलाने वाली कोई बात हो तो तुम उसे कहकर हमारी शंका मिटा दो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज