श्रीमद्भागवत माहात्म्य प्रथम अध्याय
श्रीमद्भागवत माहात्म्य (प्रथम खण्ड) प्रथम अध्यायः श्लोक 74-80 का हिन्दी अनुवाद
मन पर काबू न होने के कारण तथा लोभ, दम्भ और पाखण्ड का आश्रय लेने के कारण एवं शास्त्र का अभ्यास न करने से ध्यान योग का फल मिट गया। पण्डितों की यह दशा है कि वे अपनी स्त्रियों के साथ पशु की तरह रमण करते हैं; उसमें संतान पैदा करने की ही कुशलता पायी जाती है, मुक्ति-साधन में वे सर्वथा अकुशल हैं। सम्प्रदायानुसार प्राप्त हुई वैष्णवता भी कहीं देखने में नहीं आती। इस प्रकार जगह-जगह सभी वस्तुओं का सार लुप्त हो गया है। यह तो इस युग का स्वभाव ही है, इसमें किसी का दोष नहीं है। इसी से पुण्डरीकाक्ष भगवान् बहुत समीप रहते हुए भी यह सब सह रहे हैं। सूतजी कहते हैं—शौनक जी! इस प्रकार देवर्षि नारद के वचन सुनकर भक्ति को बड़ा आश्चर्य हुआ; फिर उसने जो कुछ कहा, उसे सुनिये। भक्ति ने कहा—देवर्षे! आप धन्य हैं! मेरा बड़ा सौभाग्य था जो आपका समागम हुआ। संसार में साधुओं का दर्शन ही समस्त सिद्धियों का परम कारण है। आपका केवल एक बार का उपदेश धारण करके कयाधूकुमार प्रह्लाद ने माया पर विजय प्राप्त कर ली थी। ध्रुव ने भी आपकी कृपा से ध्रुवपद प्राप्त किया था। आप सर्वमंगलमय और साक्षात् श्रीब्रह्मा जी के पुत्र हैं, मैं आपको नमस्कार करती हूँ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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