शक्रदेव

शक्रदेव पौराणिक महाकाव्य महाभारत के उल्लेखानुसार कलिंग देश का राजकुमार था। उसने कौरवों की ओर से महाभारत युद्ध में भाग लिया। महाबली भीमसेन द्वारा शक्रदेव का वध हुआ।

  • महाभारत के अनुसार भीमसेन का कलिंगों, निषादों तथा चेदि देश के सैनिकों के साथ घोर युद्ध हुआ। चेदि सैनिक यथाशक्ति पुरुषार्थ प्रकट करके भीमसेन को छोड़कर भाग चले।
  • चेदिदेशीय सैनिकों के पलायन कर जाने पर समस्त कलिंग भीमसेन के निकट जा पहुँचे; तो भी महाबली पाण्डुनन्दन भीमसेन अपने बाहुबल का भरोसा करके पीछे नहीं हटे और न ही रथ की बैठक से तनिक भी विचलित हुए। वे कलिंगों की सेना पर अपने तीखे बाणों की वर्षा करने लगे।[1]
  • महाधनुर्धर कलिंगराज और उसका महारथी पुत्र शुक्रदेव दोनों मिलकर पाण्डुनन्दन भीमसेन पर बाणों का प्रहार करने लगे। तब महाबाहु भीम ने अपने बाहुबल का आश्रय लेकर सुन्दर धनुष की टंकार फैलाते हुए कलिंगराज से युद्ध आरम्भ कर दिया।
  • शक्रदेव ने समरभूमि में बहुत से सायकों की वर्षा करते हुए उन सायकों द्वारा भीमसेन के घोड़ों को मार डाला।
  • शत्रुदमन भीमसेन को वहाँ रथहीन हुआ देखकर शक्रदेव तीखे बाणों की वर्षा करता हुआ उनकी ओर दौड़ा। जैसे गर्मी के अन्त में बादल पानी की बूंदें बरसाता है, उसी प्रकार महाबली शक्रदेव भीमसेन के ऊपर बाणों की वृष्टि करने लगा।
  • जिसके घोडे़ मारे गये थे, उसी रथ पर खड़े हुए महाबली भीमसेन ने शक्रदेव को लक्ष्य करके सम्पूर्णतः लोह के सारतत्त्व की बनी हुई अपनी गदा चलायी। उस गदा की चोट खाकर कलिंग राजकुमार प्राणशुन्य हो अपने सारथि और ध्वज के साथ ही रथ से नीचे पृथ्वी पर गिर पड़ा।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-20, महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 54 श्लोक 21-42

महाभारत शब्दकोश |लेखक: एस. पी. परमहंस |प्रकाशक: दिल्ली पुस्तक सदन, दिल्ली |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 10 |

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