गीता 9:8

गीता अध्याय-9 श्लोक-8 / Gita Chapter-9 Verse-8

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन: ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात् ॥8॥



अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतन्त्र हुए इस सम्पूर्ण भूत समुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ ॥8॥

Wielding my nature I release, again and again,(according to their respective actions) all this multitude of beings subject to the influence of their own nature. (8)


स्वाम् = अपनी ; अवष्टभ्य = अग्डीकार करके ; प्रकृते: = स्वभाव के ; वशात् = सशसे ; अवशम् = परतन्त्र हुए ; इमम् = इस ; कृत्स्त्रम् = संपूर्ण ; प्रकृतिम् = त्रिगुणमयी माया को ; भूतग्रामम् = भूतसमुदाय को ; पुन: पुन: = बारम्बार (उनके कर्मों के अनुसार) ; विसृजामि = रचता हूँ ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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