विरह-पदावली -सूरदास
यशोदा-वचन श्रीकृष्ण के प्रति (सूरदास जी के शब्दों में यशोदा जी कहती हैं-) मोहन! चित्त में इतना मोह (स्नेह) तो रखो कि (मुझ) माता को दुःखित समझकर कभी मथुरा न जाना। यह अक्रूर क्रूर (निष्ठुर) योजना बनाकर तुम्हें लेने आया है। (आज) विधाता ने यह विधान (कैसा) बना दिया कि जो (मेरे) पूर्वकृत कर्म अनुकूल थे, वही टेढ़े हो गये। सूरदास जी! जो बार-बार मुझसे मैया-मैया कहकर मक्खन माँगता था, उसी को ये अक्रूर लेने आये हैं, मेरे घर को ये सूना बना देंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |