विरह-पदावली -सूरदास
राग मलार (सूरदास जी के शब्दों में एक गोपी कह रही है-) देखो सखी! वहाँ वह ग्राम (नगर) है, जहाँ हमारे नन्दनन्दन रहते हैं और (जिसका) मनोहर मथुरा नाम है। वहाँ वे यमुना-किनारे परम सुन्दर स्थान में रहते हैं। सखी! सुनो, यदि मेरे शरीर में पंख हो जायँ तो (मैं) अभी वहाँ उड़ जाऊँ। जो कुछ होने वाला हो वह हो जाय; परंतु (अब) इस व्रज में अन्न नहीं खाऊँगी। नन्दनन्दन से प्रेम करके मैं (दूसरे) लोगों से क्या डरूँ ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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