विरह-पदावली -सूरदास
राग सोरठ सूरदास जी के शब्दों में फिर पथिक-नारी श्रीयशोदा जी का सँदेसा कहती हैं- ‘मेरे कुँवर कन्हैया के बिना सब कुछ वैसे ही धरा रखा है (किसी वस्तु को कोई काम में ही नहीं लाया)। अब सबेरे ही उठकर कौन मक्खन ले और कौन हाथ से मथानी की रस्सी पकड़ें?’ इस प्रकार यशोदा जी अपने सुनसान भवन में पुत्र के गुण सोच-सोचकर दुःख सहती है। (और सोचती हैं- पहिले तो) प्रत्येक दिन सबेरे उठते ही गोपियाँ मुझे (उलाहना देने को) घेर लेती थीं, पर अब कोई उलाहना नहीं देती। (उस समय) व्रज में जो आनन्द था, वह मुनियों के मन की पकड़ (ध्यान) में भी नहीं आता था; किंतु अब अपने स्वामी के बिना गोकुल अपने मूल्य में एक कौड़ी भी नहीं पाता (वह कौड़ी मूल्य का भी नहीं रहा)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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