विरह-पदावली -सूरदास
गोपिकाओं की उद्विग्नता यशोदा जी बार-बार यों कहती हैं- ‘व्रज में ऐसा कोई हमारा हितैषी है, जो जाते हुए गोपाल को रोक (रख) ले? राजा (कंस) ने मेरे छोटे-से प्यारे बच्चे को न जाने किस काम से मथुरा बुलाया है। यह अक्रूर (तो) मेरे प्राण लेने के लिये काल रूप बनकर आया है। भले ही कंस यह सब (मेरा) गोधन हरण कर ले और मुझे भी (भले ही) पकड़कर कारागार में डाल दे, किंतु मुझे इतना ही सुख दे दे कि कमल लोचन (मोहन) मेरे नेत्रों के सम्मुख (ही) खेलता रहे। दिन में मैं उसका मुख देखते हुए जीती रहूँ और रात को उसे गोद में चिपका लूँ, (क्योंकि) उसका वियोग होने पर यदि प्रारब्धवश जीवित रही तो हँसकर किसे बुलाऊँगी ?’ सूरदास जी कहते हैं कि इस प्रकार कमल लोचन श्यामसुन्दर के गुण गाते-गाते (यशोदा मैया के) ओठ और मुख सूख गये, (मैं) उन अत्यन्त दुःखित नन्दरानी की दशा का प्रत्यक्ष वर्णन कहाँ तक करूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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