विरह-पदावली -सूरदास
राग सोरठ (कोई गोपी कहती है-सखी!) प्रियतम के बिना काली रात सर्पिणी-सी हो गयी है। यदि कहीं रात्रि में चाँदनी उग आती है तो वह डंसकर उलटी (विपरीत, अत्यन्त दुःख देने वाली) हो जाती है। इस पर कोई यन्त्र स्मरण नहीं आता और न मन्त्र ही प्रभाव करता है, केवल प्रेम से ही (यह) सिरायी (विषहीन) की जाती है। सूरदास जी कहते हैं कि श्यामसुन्दर के बिना (व्रज की) वियोगिनी (गोपियाँ) मुड़-मुड़कर (करवट ले-लेकर) लहरें-सी खाती (मूर्च्छित हुई जाती) हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |