विरह-पदावली -सूरदास
(216) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) देखो, सखी! अब श्यामसुन्दर की याद आ रही है; (क्योंकि) मेढ़क, मयूर और कोकिल बोल-बोलकर वर्षा-ऋतु के आने का लक्षण प्रकट कर रहे हैं। बादलों की घटा में इन्द्रधनुष और बिजली को देखा-ऐसा लगता है मानो कामदेव अपना श्रृंगार बनाकर स्वामी के बिना हम वियोगिनियों अनाथ देखकर बार-बार व्रज पर चढ़ाई करता आता है। किससे कहूँ और कौन श्यामसुन्दर के पास जाकर यह संदेश कहेगा? हे स्वामी! कृपा करके (शीघ्र) मिलो, जिससे व्रजनारियाँ सुख पायें। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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