विरह-पदावली -सूरदास
(210) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है- सखी!) यह बदली हम वियोगिनियों की हत्या करने आयी है। मयूर पर्वतों पर चढ़कर मारू (युद्ध का) राग गा रहे हैं, पपीहे और कोकिल (भी) पुकार कर रहे हैं। हाथ में बिजली रूपी तलवार पकड़कर, बूँदों को बाण बनाकर तथा चारों ओर से सेना एकत्र करके कामदेव ने व्रज के सामने (ऊपर) धावा कर दिया है। नदियाँ अत्यन्त भरी हैं और मार्ग भी घासों से ढक गया है, (अतः मथुरा) संदेश कैसे भेजूँ ? एक तो हम वैसे ही कन्हैया के बिना दीन (असहाय) थीं और ऊपर से इन (मेघों) ने गर्जना प्रारम्भ कर दी है। (इससे ऐसा लगता है कि) व्रज को (श्यामसुन्दर से) सूना जानकर और हमसे पुरानी शत्रुता का बदला लेने का अवसर (आया) देखकर इन्द्र ने नगारे बजा दिये हैं। स्वामी! कृपा करके (शीघ्र) मिलो, नहीं तो हमारी हत्या हुई जाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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