विरह-पदावली -सूरदास
(227) (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी! श्यामसुन्दर की अनुपस्थिति में ये बादल गरज रहे हैं। (इसी बहाने) वर्षा-ऋतु ने व्रज को यह संवाद (तो नहीं) दिया है कि इन्द्र क्रोध करके पहिला दाव (बदला) लिया (चाहता) है। पपीहा भी ‘पी कहाँ, पी कहाँ’ बोल रहा है, कोकिल भी मीठे स्वर सुनाती है और मोहन का संदेश सुनकर (उनका ब्रज न आना जानकर) हमारी उपेक्षा करके बिजली चमकती दिखायी देती है। चित्त को प्रिय लगने वाले बाल-चरित्रों का स्मरण करके श्यामसुन्दर की सुधि आ रही है। स्वामी! शीघ्र क्यों नहीं मिलते? (तुम्हारे बिना) यह वियोग की वेदना किस प्रकार दूर हो सकती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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