विरह-पदावली -सूरदास
राग सोरठ (सूरदास जी के शब्दों में यशोदा जी कहती हैं- सखी!) क्या मैं ऐसे ही मर जाऊँगी? इस आँगन में गोपाल लाल को (क्या) फिर कभी गोद में लूँगी? कब फिर वह मुख देखूँगी और (बताओ) वैसा आनन्द (फिर) कब पाऊँगी? कब (श्याम) मुझसे मक्खन माँगेंगे और कब रोटी पर (मक्खन) रखकर उन्हें दूँगी? (उनसे) मिलने की आशा में ही (मेरे) शरीर में प्राण टिक रहे हैं, दस दिन तक और उनका मार्ग देखूँगी। यदि इतने पर भी (वे) नहीं आयेंगे तो जाकर यमुना में डूब जाऊँगी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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